Wednesday, August 20, 2025

‘मकान नंबर-0’ विवाद: राहुल गाँधी के बचकाने आरोप का सच, चुनाव आयोग ने दिया जवाब, हंस रही जनता

राहुल गाँधी के आरोप और आयोग की चुनौती

राहुल गाँधी ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया कि भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत से मतदाता सूची में लाखों फर्जी नाम जोड़े गए हैं।

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उन्होंने कहा कि इन नामों में पते की जगह ‘मकान नंबर-0’ लिखा गया है। लेकिन आयोग ने इन आरोपों को निराधार बताया।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस वार्ता कर स्पष्ट किया कि ‘0’ मकान संख्या असल में बेघर और पता न रखने वाले पात्र मतदाताओं के लिए प्रयोग की जाती है।

आयोग ने राहुल गाँधी को सबूत पेश करने की चुनौती दी, लेकिन अब तक उन्होंने कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई।

‘मकान नंबर-0’ की वास्तविकता

चुनाव आयोग ने ‘मकान संख्या-0’ प्रणाली 2013 में शुरू की थी, जब दिल्ली में पहली बार बेघर लोगों को मतदाता पहचान पत्र जारी किए गए।

इस व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि बेघर, साझा आवास या किराए पर रहने वाले पात्र मतदाता वोट देने से वंचित न रहें।

मतदाता पहचान पत्र के लिए ऐसे लोग फॉर्म-6 भरते हैं और उपलब्ध दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाणपत्र देते हैं। इसके बाद बीएलओ सत्यापन करता है।

यदि स्पष्ट पता नहीं होता तो मकान संख्या की जगह ‘0’ अंकित कर दिया जाता है। इसका संबंध किसी भी तरह की फर्जी वोटिंग से नहीं है।

बहुत सी ऐसी कॉलोनी हैं जहां मकान नंबर अलॉट किए हुए नहीं होते। कई बार ऐसे मुहल्लों में चुनाव आयोग खुद ही वोटरों के घरों पर शिक्षा विभाग की मदद से मकान नंबर लिखकर पेंट करवा देता है।

परन्तु यह बहुत खर्चीला काम है और हर चुनाव में ऐसी एक्सरसाईज करना चुनाव आयोग के लिए सम्भव नहीं है, न ही ऐसे नंबर आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज होते हैं और न ही वोटर उसे याद रखते हैं।

इसलिए ऐसे बिना नंबर वाली गलियों, मुहल्लों के घरों का हाउस नंबर चुनाव आयोग द्वारा जीरो दर्ज कर दिया जाता है।

इसका मतलब यह है कि उन घरों, गलियों की सरकारी रिकॉर्ड में नंबरिंग नहीं हुई है, न कि यह कि वह घर और गली है ही नहीं।

हर वोटर यह बात जानता है, इसलिए वे राहुल गांधी की इस बचकानी राजनीति पर हंस रहे हैं। जीरो नंबर मकान वोट चोरी नहीं बल्कि वोट का अधिकार सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है।

दिल्ली में वास्तविक उदाहरण

दिल्ली में कई बेघर और किरायेदार मतदाताओं के पहचान पत्र में ‘मकान नंबर-0’ दर्ज है। 67 वर्षीय अपूर्व चटर्जी ने बताया कि वे सीता राम बाजार में रहते हैं, लेकिन पहचान पत्र में उनका पता ‘0’ है और उन्होंने नियमित रूप से चुनावों में मतदान किया है।

इसी तरह रैन बसेरा बंगला साहिब में रहने वाले एक बेघर व्यक्ति ने कहा कि उसके पहचान पत्र में भी पता ‘0’ है और उसने इसी से बैंक खाता भी खोला है।

एक अन्य महिला दर्शना ने, जिनके पास आधार नहीं था, शेल्टर होम से पहचान पत्र बनवाकर कई चुनावों में मतदान किया।

राहुल की सीट रायबरेली में भी ‘0’ मतदाता

रायबरेली लोकसभा क्षेत्र, जो गाँधी परिवार का गढ़ माना जाता है, में भी ‘मकान नंबर-0’ वाले मतदाता मौजूद हैं। यहाँ कई मतदाताओं का एक ही पते पर पंजीकरण है।

सवाल उठता है कि क्या राहुल गाँधी स्वयं इस व्यवस्था से अवगत नहीं हैं, या जानबूझकर इसे फर्जीवाड़े के रूप में पेश कर रहे हैं।

कर्नाटक का मामला और जाँच की माँग

कर्नाटक के महादेवपुरा क्षेत्र में भी हाल ही में ऐसे कई मतदाताओं के वीडियो सामने आए, जिनके पहचान पत्र में पते की जगह ‘0’ लिखा था। ये लोग लंबे समय से वहीं रह रहे थे, लेकिन मकान नंबर न होने पर अधिकारियों ने ‘0’ दर्ज किया।

मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गाँधी से आरोपों के प्रमाण देने को कहा था और इसके लिए उन्हें एक सप्ताह का समय दिया गया।

अब यह सवाल गहरा रहा है कि अगर आरोप गंभीर थे तो राहुल गाँधी जाँच से क्यों भाग रहे हैं और औपचारिक शिकायत क्यों नहीं कर रहे।

राजनीतिक रंग और विपक्ष की रणनीति

राहुल गाँधी के आरोपों के बाद विदेशी मीडिया और विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को हवा दी।

लेकिन आयोग द्वारा लगातार तथ्य सामने रखने के बावजूद राहुल न तो सबूत दे रहे हैं और न ही पीछे हट रहे हैं। इससे यह मामला राजनीतिक रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।

‘मकान नंबर-0’ कोई वोट चोरी नहीं बल्कि पात्र मतदाताओं को उनके संवैधानिक अधिकार की गारंटी है।

आयोग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई नागरिक केवल इसलिए वोट देने से वंचित न हो, क्योंकि उसका घर स्थायी या पते वाला नहीं है। आरोपों के विपरीत, यह व्यवस्था लोकतांत्रिक समावेश का प्रतीक है।


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