पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर का अनोखा त्याग, सम्पत्ति और आवास दान कर बने मिसाल
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक मनोहर लाल खट्टर ने ऐसा कदम उठाया है, जिसने पूरे राजनीतिक जगत को हैरान कर दिया।
उन्होंने अपनी संपूर्ण संपत्ति प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर दी। इतना ही नहीं, अपना निजी आवास भी उन्होंने सार्वजनिक पुस्तकालय के लिए समर्पित कर दिया।
साधारण जीवन जीने वाले खट्टर जी, दान के बाद सरकारी बस से गांव लौटने के लिए बस स्टैंड की ओर बढ़ गए। यह दृश्य स्वतंत्र भारत के ईमानदार नेताओं की परंपरा को जीवित करता है।

इतिहास में ऐसे ही कदम श्री लाल बहादुर शास्त्री और हिमाचल के निर्माता वाईएस परमार ने भी उठाए थे।
राजनीति में त्याग की परंपरा और वर्तमान पर सवाल
खट्टर जी ने विधान सभा की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया है और स्वयं को संगठन के कार्यों के लिए केंद्रीय नेतृत्व को समर्पित कर दिया है।
भौतिकवादी कलयुग में जहां राजनीति ऐशो-आराम का माध्यम बन गई है, वहां उनका यह त्याग अनुकरणीय है।
आज की स्थिति इसके विपरीत है। पंचायत स्तर से लेकर उच्च सत्ता तक पहुँचने वाले नेताओं में ऐशो-आराम की लालसा साफ दिखाई देती है।

जैसे-जैसे राजनीतिक कद बढ़ता है, वैभवशाली गाड़ियाँ, फार्महाउस, महानगरों में आलीशान बंगले और आभूषण संग्रह सामान्य हो जाते हैं।
सत्ता की राजनीति और अवैध ऐशो-आराम का सच
आज की राजनीति में जनता के लिए जारी योजनाओं की राशि में हेराफेरी कर निजी संपत्ति खड़ी करने का चलन आम है।
नेताओं की जीवनशैली में यह भ्रष्ट कमाई स्पष्ट झलकती है। इस प्रवृत्ति ने लोकतंत्र की आत्मा को चोट पहुंचाई है।
हिमाचल प्रदेश की मौजूदा सरकार इसका बड़ा उदाहरण मानी जा रही है। जनता से किए वादों को भुलाकर सत्ता में आते ही नेताओं ने सबसे पहले अपनी सैलरी लाखों में बढ़ाई।
फिर अपने रिश्तेदारों और करीबियों को संस्थानों और बोर्डों में ऊँचे पदों पर बिठाया और मोटी तनख्वाहें दिलाईं।
जनता के साथ विश्वासघात और कर्मचारियों की नाराजगी
जनता से किए गए विकास के वादे पूरे नहीं हुए। उल्टे बिजली, पानी और परिवहन जैसे बुनियादी क्षेत्रों में भारी टैक्स और शुल्क बढ़ा दिए गए।
सबसे बड़ा धोखा उन सरकारी कर्मचारियों से हुआ, जिन्होंने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) लागू करवाने के वादे पर सरकार को जिताया था।
आधे कर्मचारियों को अब तक ओपीएस का लाभ नहीं मिला और जिन्हें मिला, वे भी निराशा में अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।
कर्मचारियों को वित्तीय लाभ की कोई सुविधा नहीं दी गई। ऐसे में सरकार की नीतियों से नाराजगी लगातार बढ़ रही है और जनता के बीच विश्वास का संकट गहराता जा रहा है।