गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने विधानसभा के मानसून सत्र में ऐलान किया कि राज्य में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए एक सख्त कानून लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह कानून उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तर्ज पर होगा, जहाँ पहले से इस प्रकार के नियम लागू हैं।
इस प्रस्ताव से पहले भाजपा विधायक प्रमेन्द्र शेट और आम आदमी पार्टी के विधायक क्रूज सिल्वा ने यह मुद्दा उठाया था। चर्चा में कई विधायकों ने राज्य में हुए धर्मांतरण के मामलों की जानकारी माँगी और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा पकड़े गए एसबी कृष्णा के केस की ओर ध्यान दिलाया।
एसबी कृष्णा, जिसने इस्लाम अपनाकर आयशा उर्फ निक्की नाम रखा, पर आरोप है कि वह दो हिंदू लड़कियों को गोवा से निकाह के लिए उत्तर प्रदेश ले गया। यह मामला उस वक्त सामने आया जब कई राज्यों में कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों द्वारा धर्मांतरण रैकेट पकड़े गए।
सीएम सावंत बोले: “लव जिहाद” के खिलाफ भी होगी कार्रवाई
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि गोवा में अलग-अलग धर्मों के लोग अपनी इच्छा से विवाह कर सकते हैं, लेकिन जबरन धर्मांतरण किसी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘लव जिहाद’ जैसे मामलों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए और अगर आवश्यक हुआ तो वे ऐसे मामलों का विवरण भी प्रस्तुत कर सकते हैं।
सीएम ने धर्मांतरण कराने वालों की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि लालच, पैसे या जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन करना गोवा की गंगा-जमुनी तहजीब के खिलाफ है।
उन्होंने सभी दलों से अपील की कि इस कानून का समर्थन करें और हिंदू समाज की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
गोवा पुलिस पर आम आदमी पार्टी का सवाल
विधायक क्रूज सिल्वा ने पूछा कि जब उत्तर प्रदेश पुलिस गोवा में रह रही एक संदिग्ध महिला को गिरफ्तार कर सकती है, तो गोवा पुलिस और क्राइम ब्रांच को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी।
संदिग्ध महिला पर ISIS से जुड़े होने का आरोप है और वह हाल ही में ओल्ड गोवा में हुए संत फ्रांसिस जेवियर के समारोह के दौरान गिरफ्तार की गई।
उन्होंने माँग की कि गोवा में रह रहे सभी संदिग्ध लोगों की पहचान की जाए और पुलिस को राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सजग बनाया जाए। उन्होंने गोवा की अंतरराष्ट्रीय छवि और पर्यटकों की सुरक्षा की भी चिंता जताई।
यूपी पुलिस ने ‘मिशन अस्मिता’ के तहत पकड़े धर्मांतरण गिरोह
उत्तर प्रदेश पुलिस ने ‘मिशन अस्मिता’ अभियान के तहत अवैध धर्मांतरण में शामिल दस लोगों को छह राज्यों से गिरफ्तार किया। इनमें से छह पहले हिंदू थे और अब इस्लाम अपना चुके हैं। गिरोह के सदस्य युवाओं को बहलाकर इस्लाम में धर्मांतरण करा रहे थे।
इस नेटवर्क का मास्टरमाइंड अब्दुल रहमान था, जिसे दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके से पकड़ा गया। जाँच में पता चला कि इस रैकेट का संबंध इस्लामिक स्टेट (ISIS) से है और इसे विदेशी फंडिंग भी मिल रही थी। इसमें शामिल लोग फोन, सिम कार्ड, कानूनी मदद और प्रेमजाल के जरिये धर्मांतरण कराते थे।
बारह राज्यों में पहले से लागू हैं धर्मांतरण विरोधी कानून
भारत के 12 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून पहले से लागू हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
इन कानूनों के अंतर्गत जबरन, धोखे या लालच से धर्म परिवर्तन करने वालों को सजा और जुर्माना तय किया गया है।
इन राज्यों में ‘धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ के माध्यम से कानून बनाए गए हैं, जो धर्मांतरण से पहले अनुमति लेना अनिवार्य करते हैं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो उसे गैरकानूनी माना जाएगा और कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए कड़े निर्णय
अरुणाचल प्रदेश ने 46 साल बाद 1978 के धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम को लागू करने का निर्णय लिया है। वहीं, छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ के तहत नए प्रावधान लाने की घोषणा की है, जिसमें जनजातीय समुदाय के धर्म परिवर्तन पर सख्त सजा का प्रावधान है।
इस कानून में महिलाओं, बच्चों और आदिवासियों का जबरन धर्म परिवर्तन अपराध माना जाएगा, जिसमें कम से कम 2 साल से 10 साल तक की जेल और 25,000 से अधिक का जुर्माना तय किया गया है।
गुजरात, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने भी उठाए सख्त कदम
गुजरात सरकार ने 2021 में धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन विधेयक लाया, जिसमें धोखे से शादी और धर्मांतरण जैसे मामलों में गैर-जमानती अपराध की श्रेणी तय की गई है।
हरियाणा में 2022 में पारित कानून के अनुसार नाबालिगों और महिलाओं के साथ धर्म परिवर्तन के मामलों में सजा और जुर्माना अधिक है।
हिमाचल प्रदेश ने 2022 में अपने पुराने कानून को संशोधित कर उसे और अधिक सख्त बनाया है। इसमें छिपी पहचान से शादी करने और सामूहिक धर्मांतरण जैसे मामलों में 10 साल तक की सजा और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया गया है।
झारखंड, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की स्थिति
झारखंड ने 2017 में ‘धर्म स्वतंत्रता अधिनियम’ पारित किया था, जिसमें धर्म परिवर्तन से पहले जिला प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य है। कर्नाटक में 2022 में सख्त कानून बना, लेकिन 2023 में कांग्रेस सरकार ने उसे वापस ले लिया।
मध्य प्रदेश में लागू कानून के अनुसार, धोखे से या शादी के बहाने धर्म परिवर्तन पर कड़ी सजा तय की गई है। संस्थागत रूप से धर्मांतरण में संलिप्त पाए जाने पर संबंधित संस्थान की सहायता रोकने और संपत्ति जब्त करने का प्रावधान भी है।
ओडिशा और राजस्थान के कानून
ओडिशा पहला राज्य था जहाँ 1967 में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हुआ। इस कानून के अनुसार, धर्म परिवर्तन से पहले सूचना देना अनिवार्य है और उल्लंघन करने पर सजा और जुर्माना तय है। राजस्थान में 2025 में पारित विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि धर्मांतरण से पहले 60 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
राजस्थान में महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के जबरन धर्मांतरण पर कड़ी सजा का प्रावधान है, जो 10 साल तक की जेल और 50,000 रुपये जुर्माने तक जा सकती है।
उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की कठोर व्यवस्था
उत्तराखंड में 2018 में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया गया, जिसमें शपथ पत्र देना और एक माह पूर्व सूचना अनिवार्य है। उत्तर प्रदेश में 2024 में संशोधित कानून के बाद अब अवैध धर्मांतरण पर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है, विशेष रूप से यदि वह सामूहिक, विदेशी फंडिंग या धोखे से किया गया हो।
इसके अंतर्गत नाबालिग, महिलाएँ या तस्करी पीड़ित अगर शामिल हों, तो सजा 20 साल से उम्रकैद तक हो सकती है। इस कानून ने राज्य में लव जिहाद और कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियों पर काफी हद तक अंकुश लगाया है।
गोवा में अब सख्ती की तैयारी
देश के बारह राज्यों की सूची में अब गोवा भी शामिल होने को तैयार है। मुख्यमंत्री सावंत की सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि लव जिहाद और धर्मांतरण के मामलों पर कोई नरमी नहीं बरती जाएगी।
अब यह देखना होगा कि गोवा का प्रस्तावित कानून किस दिशा में आगे बढ़ता है और इसका राज्य की सामाजिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है।