Gangaur: गणगौर पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार देवी पार्वती और भगवान शिव के विवाह का प्रतीक है। यह त्योहार महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और वे इसे पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं। इस बार यह त्योहार 15 मार्च से लेकर 31 मार्च तक मनाया जाएगा।
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Gangaur: कितने दिन चलता है गणगौर
गणगौर पूजा का आयोजन होली के अगले दिन से शुरू होता है जोकि लगभग 16 दिन तक चलता है। इस पूजा में विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए पूजा करती हैं।
हिमालय पर्वत पर माता पार्वती ने किया तप
ऐसा कहा जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत ऐसा है, जिससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो। इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती को गणगौर व्रत के बारे में बताया। पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने हिमालय पर्वत पर जाकर 16 दिनों तक कठोर तप किया और भगवान शिव की पूजा की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को आशीर्वाद दिया कि जो भी स्त्री इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करेगी, उसे सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।
कृषि से है खास संबंध
गणगौर पूजा का संबंध कृषि से भी है। इस पर्व को फसल की अच्छी पैदावार और हरियाली के लिए भी मनाया जाता है। इसी के साथ ही तब से महिलाओं ने इस व्रत को करने की परंपरा शुरू की। शादी के बाद पहली गणगौर पूजा का खास महत्व होता है। विवाहित महिलाएं इस दिन सुहाग के प्रतीक स्वरूप चूड़ी, सिंदूर, महावर और मेहंदी लगाती हैं।
मिट्टी से बनाती है मूर्तियां
गणगौर की पूजा के लिए विवाहित महिलाएं और कुंवारी लड़कियां सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं। महिलाएं मिट्टी से शिव और गौर (पार्वती) की मूर्ति बनाती हैं। इन मूर्तियों को फूलों, चूड़ियों, वस्त्रों और श्रृंगार की वस्तुओं से सजाया जाता है। प्रतिदिन सुबह और शाम गणगौर की मूर्तियों को जल और फूल चढ़ाए जाते हैं। महिलाएं विशेष गीत गाकर माता गौरी की आराधना करती हैं। गणगौर के आंतिम दिन एक शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें महिलाएं गणगौर की मूर्तियों को सिर पर रखकर नदी या तालाब तक ले जाती हैं और वहां उनका विसर्जन करती हैं। यह शिव और पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है।
क्या है घुड़ला नृत्य
गणगौर के त्योहार जब मानते है तब उसमे घुड़ला नृत्य किया जाता है। जिसमे महिलाएं अपने सिर पर खूब सारे छेद वाला घड़ा या मटका रख कर नाचती है। यह नृत्य, जोधपुर के राजा राव सातल की याद और उन्हें सम्मान देने के लिए किया जाता है। ऐसा कहते है कि राजा सातल के समय में जोधपुर के एक गांव की कुछ लड़कियां गणगौर की पूजा करने कुंए के पास गई हुई थी। उसी समय वहां से घुड़ले खान नाम का अजमेर का एक सेनापति निकलता है। उसकी नज़र उन लड़कियों पर पड़ती है तो वो उन्हें उठा कर ले जाता है।
इस बात की जानकारी जब राजा सातल को होती है तो वो घुड़ले खान का पीछा करते है। फिर वो घुड़ले खान के साथ युद्ध करते है जिसमे वो उसके सिर पर इतने तीर मारते है की उसके सिर में छेद हो जाते है और उसकी मौत हो जाती है। इसके बाद वो उन लड़कियों को सुरक्षित वापिस ले आते है, और घुड़ला खान का कटा सर लड़कियों को दे देते हैं, जिससे वे खेलती हुई पूरे गांव में घूमती हैं।
राजा सातल को दिया जाता है सम्मान
इस युद्ध में राव सातल को भी काफी चोट आती है और कुछ दिनों बाद उनकी भी मृत्यु हो जाती है। इसीलिए शीतला अष्टमी से लेकर गणगौर तक महिलाएं राजा सातल को सम्मान देने के लिए सिर पर घुड़ला खान के सिर जैसा छेदों वाला मटका, रख कर नृत्य करती है। इस नृत्य का नाम भी घुड़ले खान के ऊपर पड़ा है, जिसे घुड़ले नृत्य कहते है।
इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं और लोकगीत गाकर नृत्य करती हैं। राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य के माध्यम से इस पर्व को उत्सव का रूप दिया जाता है। शाही परिवारों द्वारा गणगौर के अवसर पर विशेष आयोजन किए जाते हैं। यह पर्व महिलाओं को अपने वैवाहिक जीवन में प्रेम और सम्मान बनाए रखने की प्रेरणा देता है।