यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर ने प्रधानमंत्री मोदी से लम्बी बातचीत में भारत के प्रयासों की प्रशंसा की।
उन्होंने कहा कि भारत ही है जो लगातार राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से संवाद बनाए हुए है और रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्ति की दिशा में ले जाकर वैश्विक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।
उर्सुला ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर गंभीर कोशिशें हो रही हैं और बहुत जल्द ही इसका रास्ता निकाल लिया जाएगा।
यह बातचीत ऐसे समय में हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यूरोपियन यूनियन पर भारत के खिलाफ अमेरिकी शैली के टैरिफ़ लगाने का दबाव बना रहे हैं।
अमेरिकी दबाव, घटता समर्थन और मीडिया का पलटवार
डोनाल्ड ट्रम्प ने जब टैरिफ़ युद्ध शुरू करने का ऐलान किया था तब 70% अमेरिकी, जिनमें 20% डेमोक्रेट भी शामिल थे, इसके समर्थन में थे।
लेकिन जैसे ही ट्रम्प ने अपने सहयोगी देशों को भी निशाने पर लिया, समर्थन घटकर 52% पर पहुँच गया।
SCO बैठक के बाद चीन समर्थक अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया के हमलों ने हालात और बिगाड़ दिए।
ऐसे में ट्रम्प का अंतिम दांव यही था कि यूरोपियन यूनियन भारत पर कड़ा कदम उठाए, जिससे भारत अमेरिका की शरण में लौट आए।
लेकिन यह भी नाकाम साबित हुआ। भारत ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि स्वतंत्रता और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं होगा।
एक हज़ार साल की गुलामी झेल चुके देश की जनता भूखी रहना तो स्वीकार करेगी लेकिन आत्मसम्मान पर आंच नहीं आने देगी।
पीटर नोवरो की साज़िश और भारत का ठोस जवाब
ट्रम्प के ट्रेड सलाहकार पीटर नोवरो ने ब्राह्मणों के नाम पर भारत को भड़काने का प्रयास किया, लेकिन यह उल्टा असर डाल गया।
देशभर में इस बयान को गंभीरता से लेने के बजाय मजाक बनाया गया। उदित राज को छोड़कर किसी ने इसका समर्थन नहीं किया।
यहां तक कि अखिलेश यादव ने भी इसे, “भारत के सामाजिक ताने बाने में अवांछित अतिक्रमण” बताकर विरोध दर्ज किया।
इससे केवल पीटर की नीयत उजागर हुई कि भारत को जातीय आधार पर तोड़ने की कोशिश की जा रही थी।
यही नहीं, यूरोपियन यूनियन द्वारा ज़ेलेंस्की पर भारत के भरोसे को रेखांकित करना ट्रम्प के लिए बड़ा झटका है। यह संदेश है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका से ज़्यादा भारत के प्रयासों को अहमियत दी जा रही है।
ट्रम्प-ज़ेलेंस्की अविश्वास और भारत की निर्णायक संभावना
गार्डियन की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि ट्रम्प और जे.डी. वांस ने यूक्रेन के पूर्व सेनापति तथा ब्रिटेन स्थित राजदूत ज़ुलुज्नु को विद्रोह के लिए उकसाया।
बदले में राष्ट्रपति पद और CIA समर्थन का वादा किया गया, लेकिन ज़ुलुज्नु ने इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर दिया। इस घटना ने ज़ेलेंस्की के मन में ट्रम्प के प्रति अविश्वास को और गहरा कर दिया।
ज़ेलेंस्की की स्थिति कठिन है। वह रूस के खिलाफ युद्ध में तो है लेकिन बातचीत का रास्ता खोजने के लिए उसके पास भारत के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
न यूरोप प्रत्यक्ष वार्ता कर सकता है, न अमेरिका मददगार साबित हुआ, न ही चीन और उत्तर कोरिया पर भरोसा संभव है। यही कारण है कि भारत की भूमिका दिन-प्रतिदिन निर्णायक होती जा रही है।
भारत का आत्मविश्वास और ट्रम्प की गलतियां
शतरंज जैसे इस भू-राजनीतिक खेल में ट्रम्प ने दो बड़ी गलतियां कीं, एक, सहयोगी देशों पर दबाव बनाकर समर्थन खोना, और दूसरी, यूक्रेन में सत्ता पलट का षड्यंत्र रचकर विश्वास खो देना।
भारत ने इन दोनों परिस्थितियों का लाभ अपने आत्मविश्वास और संतुलित कूटनीति से पूरी तरह उठाया है और यही उसे आने वाले दिनों में सबसे अहम खिलाड़ी बनाएगा।