DR. SHYAM BIHARI AGRAWAL: डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल भारतीय पारंपरिक और आधुनिक चित्रकला के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उनका योगदान चित्रकला, कला इतिहास, कला शिक्षा और सांस्कृतिक जागरूकता के संवर्धन में छह दशकों से अधिक समय तक फैला हुआ है।
उन्होंने न केवल परंपरागत भारतीय कलाशैलियों जैसे बसोहली, कांगड़ा, मेवाड़ और बंगाल स्कूल को पुनर्जीवित करने का कार्य किया, बल्कि उन्हें समकालीन संदर्भों में भी प्रस्तुत किया। उनके कार्यों ने भारतीय चित्रकला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दिलाई है।
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DR. SHYAM BIHARI AGRAWAL: शिक्षा और कलात्मक प्रशिक्षण
डॉ. अग्रवाल का जन्म 1 सितंबर 1942 को सिरसा, प्रयागराज में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से चित्रकला में शिक्षा प्राप्त की और फिर कोलकाता के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट में अध्ययन कर अपनी कलात्मक दक्षता को और निखारा।
विख्यात चित्रकार क्षितिंद्र नाथ मजूमदार से प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने फ्रेस्को, भित्तिचित्र और लघुचित्र परंपरा में विशेष दक्षता प्राप्त की। यह प्रशिक्षण उनकी कलात्मक शैली में गहराई, परंपरा और आधुनिकता के अद्भुत समन्वय के रूप में सामने आया।
कला शिक्षा और शिक्षण में योगदान
डॉ. अग्रवाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दृश्य कला विभाग में वर्षों तक बतौर व्याख्याता, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष कार्य किया। उन्होंने कला शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और विस्तार हेतु पाठ्यक्रम निर्माण, शैक्षणिक शोध और अकादमिक सलाहकार की भूमिकाएं निभाईं।
उनके निर्देशन में अनेक शोधार्थियों ने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। साथ ही, वे कई विश्वविद्यालयों, अकादमिक परिषदों और कला बोर्डों के सदस्य भी रहे।
संस्थान निर्माण और लेखन कार्य
कलात्मक संवर्धन हेतु डॉ. अग्रवाल ने प्रयागराज में ‘रूप शिल्प ललित कला संस्थान’ की स्थापना की। यह संस्था कला प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं और संगोष्ठियों के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करने का कार्य कर रही है। उन्होंने ‘रूपलेखा’ और ‘कला दर्पण’ जैसी प्रतिष्ठित कला पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
उनके द्वारा लिखित ग्रंथों में भारतीय चित्रकला और काव्य, भारतीय चित्रकला का इतिहास (खंड I व II), तथा चित्रांकन और रचना प्रमुख हैं।
सम्मान और पद्मश्री की प्राप्ति
डॉ. अग्रवाल की कलात्मक उत्कृष्टता को कई राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनकी कलाकृतियां इलाहाबाद संग्रहालय, कुमाऊं रेजीमेंट के ऑफिसर्स मेस और अनेक भारतीय व विदेशी कला संग्रहों में संरक्षित हैं। उन्हें ‘राष्ट्रीय मानवता पुरस्कार’ सहित कई अन्य सम्मानों से नवाज़ा गया है।
साल 2025 में, भारत सरकार ने उन्हें “कला के क्षेत्र में पद्मश्री” से सम्मानित किया, जो उनके जीवन भर की उपलब्धियों और भारतीय चित्रकला को वैश्विक पहचान दिलाने के योगदान का प्रतीक है।
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