Thursday, November 21, 2024

बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद: देश की संस्कृति और परंपरा की झलक

उत्तराखंड के माणा गांव की 92 वर्षीय फुलवारी ने बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भेड़ की ऊन से 8×10 फीट का एक विशेष कंबल तैयार किया, जिसे रविवार रात 9:07 बजे भगवान बद्रीनाथ को ओढ़ाया गया। यह कंबल माणा महिला समूह द्वारा कुछ ही घंटों में तैयार किया गया था। फुलवारी स्वयं इस भावुक क्षण में उपस्थित थीं।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

भावुकता से भरी कपाट बंद होने की प्रक्रिया

कपाट बंद होने की परंपरा पांच दिन पहले शुरू होती है। 13 नवंबर को गणेश मंदिर के कपाट बंद हुए, उसके बाद 14 को आदि केदारेश्वर और शंकराचार्य मंदिर के। 15 नवंबर को बद्रीनाथ के गर्भगृह में वेद पुस्तकों का पूजन हुआ। 16 नवंबर को माता लक्ष्मी को निमंत्रण दिया गया ताकि वे भगवान बद्रीनाथ के साथ शीतकाल में गर्भगृह में निवास कर सकें।

रावल की सखी रूप में विशेष भूमिका

बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी (रावल) अमरनाथ नंबूदरी ब्रह्ममुहूर्त में पंच स्नान कर साड़ी, नथ, और गहनों में सजी सखी के रूप में माता लक्ष्मी को गर्भगृह लाने गए। यह प्रक्रिया रात 7:45 बजे पूरी हुई, जिसके बाद बद्रीविशाल की शयन आरती हुई। गर्भगृह में अखंड ज्योत प्रज्वलित कर रावल उल्टे कदमों से बाहर आए, क्योंकि भगवान को पीठ दिखाना परंपरा के विरुद्ध है।

शीतकाल में परंपराएं जारी रहेंगी

कपाट बंद होने के बाद रावल केरल लौट जाएंगे और देशभर में धार्मिक यात्राओं का पालन करेंगे। इस दौरान उद्धव जी की प्रतीकात्मक डोली पांडुकेश्वर में और शंकराचार्य जी की गद्दी, गरुड़ जी, और कुबेर जी की डोली जोशीमठ ले जाई जाती हैं।

कपाट बंद होने का यह आयोजन भारत की प्राचीन परंपराओं और आध्यात्मिकता की समृद्धि को दर्शाता है। श्रद्धालु इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बनकर अद्वितीय अनुभव प्राप्त करते हैं।

- Advertisement -

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -

Latest article