Wednesday, December 17, 2025

दिग्विजय सिंह ने संघ को राष्ट्रविरोधी कहने से किया इनकार, कहा संघ का लक्ष्य केवल हिन्दू राष्ट्र

दिग्विजय सिंह

दिग्विजय सिंह के बयान के बहाने विचारधारा का आत्ममंथन

आज़ तक के एक सधे हुए लेकिन असहज इंटरव्यू में जब दिग्विजय सिंह से सीधे पूछा गया कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र विरोधी है, तो यह प्रश्न केवल एक संगठन पर टिप्पणी भर नहीं था। यह दरअसल उस राजनीतिक परंपरा की परीक्षा थी, जो दशकों से संघ को गाली देकर अपनी वैचारिक पहचान गढ़ती रही है।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

दिग्विजय सिंह ने उस सवाल से खुद को अलग रखा। उन्होंने “राष्ट्र विरोधी” शब्द कहने से साफ इनकार कर दिया। यह इनकार सामान्य नहीं था, क्योंकि यह उस कांग्रेस संस्कृति से अलग था जिसमें संघ को राष्ट्र से अलग करके देखना लगभग अनिवार्य बना दिया गया है।

राहुल गांधी का दबाव और दिग्गी राजा की असहमति

पार्टी लाइन से हटकर दिया गया जवाब

इंटरव्यू में जब दिग्विजय सिंह पर यह कहकर दबाव बनाया गया कि राहुल गांधी स्वयं संघ को राष्ट्र विरोधी कहते हैं, तब भी उन्होंने उस शब्द को अपनाने से इनकार कर दिया। यह क्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय राजनीति में अक्सर वरिष्ठ नेता भी पार्टी हाईकमान की लाइन से बाहर जाने से बचते हैं।

लेकिन यहाँ दिग्विजय सिंह ने साफ किया कि वह भाजपा के राजनीतिक विरोधी हैं, संघ के नहीं। यह अंतर वही है, जिसे कांग्रेस ने लंबे समय तक जानबूझकर धुंधला किया।

पत्रकार से दिग्विजय की बातचीत का वह अंश ये है-

पत्रकार: अच्छा राष्ट्र विरोधी है कि नहीं है आरएसएस राष्ट्र विरोधी है कि नहीं है? क्योंकि राहुल गांधी कह चुके हैं।

दिग्विजय सिंह: “कोई राष्ट्र विरोधी मैं नहीं कहूंगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्योंकि एक बात, मैं तारीफ करूंगा कि उनका 1925 से लेकर आज तक का एजेंडा एक ही है हिंदू राष्ट्र, और वो हिंदू राष्ट्र का एजेंडे से वह इधर-उधर नहीं जाते। और वहां पर उनके जो प्रचारक हैं उनका मेंटल इंडॉक्टिनेशन इतना जबरदस्त हो जाता है कि, वह जैसे मैं तो हमेशा कहता हूं मजाक में कि जिस तरह से रास्ता पे चलते हुए टांगे के घोड़े को केवल सड़क दिखती है उसी तरह से आरएसएस के प्रचारक को केवल हिंदू राष्ट्र नजर आता है। इधर-उधर वो देख भी नहीं सकता।”

संघ की तारीफ, वह भी कांग्रेस नेता के मुंह से

सौ साल की निरंतरता और लक्ष्य के प्रति एकाग्रता

दिग्विजय सिंह का सबसे चौंकाने वाला वक्तव्य वह था, जब उन्होंने संघ की एक बात के लिए प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सौ साल बाद भी संघ हिंदू राष्ट्र के अपने एजेंडे पर कायम है और उसके प्रचारक तांगे के घोड़े की तरह केवल अपने लक्ष्य पर नजर रखकर काम करते हैं।

यह टिप्पणी संगठनात्मक अनुशासन और वैचारिक स्थिरता की स्वीकारोक्ति थी। भारतीय राजनीति में जहां दल हर पांच साल में रंग बदलते हैं, वहां संघ का दीर्घकालिक धैर्य स्वयं में एक राजनीतिक तथ्य है।

दिग्विजय सिंह का अतीत और संघ-विरोध की राजनीति

नक्सल समर्थन से हिंदू आतंकवाद तक

यह स्वीकार करना होगा कि दिग्विजय सिंह का राजनीतिक अतीत संघ और हिंदू समाज के प्रति अत्यंत आक्रामक रहा है। नक्सलवाद के प्रति सहानुभूति, हिंदू आतंकवाद की थ्योरी को हवा देना और 26 11 जैसे आतंकी हमले में आरएसएस की साजिश का संकेत देना, यह सब उसी वैचारिक राजनीति का हिस्सा था, जिसने हिंदू समाज को कटघरे में खड़ा किया। यही कारण है कि उनके हालिया बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

लखनऊ की वह मुलाकात, जिसने सोच बदल दी

संवाद की शक्ति और वैचारिक भ्रम का टूटना

ज्ञात जानकारी के अनुसार, लगभग एक वर्ष पूर्व लखनऊ में दिग्विजय सिंह की संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी से लंबी और खुले वातावरण में चर्चा हुई। यह कोई मंचीय बहस नहीं थी, न मीडिया के कैमरे थे, न राजनीतिक नारे।

उसी बातचीत में दिग्विजय सिंह ने स्वीकार किया कि संघ को लेकर उनकी धारणाएं गलत थीं। उन्होंने यह भी कहा कि आगे जीवन भर वह इस संगठन के खिलाफ कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं करेंगे। यह स्वीकारोक्ति भारतीय राजनीति में दुर्लभ है, क्योंकि यहां गलती मानना कमजोरी समझा जाता है।

प्रेस कांफ्रेंस जो दबा दी गई

भाजपा विरोध और संघ से दूरी की साफ रेखा

लखनऊ में ही दिग्विजय सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट रूप से कहा था कि वह भाजपा के खिलाफ हैं, संघ के नहीं। यह बयान स्थानीय मीडिया में लगभग अदृश्य रहा। यह चुप्पी भी अपने आप में एक संकेत है कि भारतीय मीडिया और राजनीतिक विमर्श किस तरह कुछ तथ्यों को दबाकर एक तय नैरेटिव को जीवित रखता है।

कांग्रेस की वैचारिक दुविधा

संघ को गाली या संवाद, दोनों साथ नहीं चल सकते

दिग्विजय सिंह का यह बदला हुआ रुख कांग्रेस के लिए असहज है। एक ओर राहुल गांधी और पार्टी का बड़ा वर्ग संघ को राष्ट्र विरोधी कहने की राजनीति करता है, दूसरी ओर वही पार्टी का एक वरिष्ठ नेता संघ के प्रति सम्मानजनक भाषा अपनाता है। यह टकराव दिखाता है कि कांग्रेस आज भी यह तय नहीं कर पाई है कि वह हिंदू समाज और उसकी संस्थाओं को दुश्मन माने या उनसे संवाद करे।

संघ का मूल मंत्र और दीर्घकालिक दृष्टि

विरोधी नहीं, संभावित साथी

संघ में प्रचलित एक कथन है कि हिंदू समाज का कोई भी व्यक्ति हमारा शत्रु नहीं है। जो आज हमारा समर्थन नहीं कर रहा, वह कल करेगा। यह कथन अहंकार से नहीं, दीर्घकालिक सामाजिक मनोविज्ञान की समझ से निकला है।

संघ का विश्वास है कि निरंतर संवाद, सामाजिक कार्य और वैचारिक स्पष्टता अंततः भ्रम को तोड़ती है। दिग्विजय सिंह का उदाहरण इसी प्रक्रिया का जीवंत प्रमाण है।

राजनीति से आगे समाज की सच्चाई

जब संवाद चलता है, तो ध्रुवीकरण टूटता है

यह पूरा प्रसंग केवल एक इंटरव्यू या एक नेता के बयान तक सीमित नहीं है। यह उस बड़े सत्य की ओर इशारा करता है कि वैचारिक युद्ध नारेबाजी से नहीं, संवाद से खत्म होते हैं।

जिन नेताओं ने दशकों तक संघ को एक राक्षसी छवि में देखा, उनमें से एक का यह कहना कि वह अपनी सोच में गलत थे, भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है।

जब जागो तभी सवेरा, राजनीति में भी

दिग्विजय सिंह का बयान किसी संतत्व का प्रमाण नहीं है, न ही उनके अतीत को धो देता है। लेकिन यह बताता है कि वैचारिक जड़ता टूट सकती है। संघ की यही रणनीति रही है कि दरवाजे बंद मत करो, बातचीत बंद मत करो।

आज नहीं तो कल, सच अपनी जगह बना ही लेता है। भारतीय राजनीति में शायद यही वह सवेरा है, जिसकी रोशनी अभी दूर से दिखनी शुरू हुई है।

Mudit
Mudit
लेखक 'भारतीय ज्ञान परंपरा' के अध्येता हैं और 9 वर्षों से भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा एवं राजनीति पर गंभीर लेखन कर रहे हैं।
- Advertisement -

More articles

- Advertisement -

Latest article