शेख हसीना: बांग्लादेश की राजनीति में हलचल और दक्षिण एशिया की कूटनीति में तनाव पैदा करने वाली एक बड़ी खबर सामने आई है।
बांग्लादेश की अदालत ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को निहत्थे नागरिकों पर गोली चलाने, हिंसक कार्रवाई का आदेश देने और मानवता के खिलाफ अपराध के मामले में दोषी ठहराया है।
ढाका की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में साफ कहा कि 2024 में छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं, गोलीबारी और हेलीकॉप्टर व ड्रोन के इस्तेमाल का आदेश हसीना ने दिया था।
अदालत ने उन्हें दो मामलों में मौत की सजा सुनाते हुए यह भी कहा कि सरकार में रहते हुए हसीना और उनके करीबी सहयोगियों ने विरोध को कुचलने के लिए ऐसे निर्देश दिए,
जो सीधे-सीधे मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आते हैं।
शेख हसीना: भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि
फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि क्या अब बांग्लादेश की पुलिस या सेना भारत में मौजूद शेख हसीना को जबरन गिरफ्तार कर सकती है?
सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक हलकों तक हर जगह इस संभावना पर चर्चा हो रही है, तो चलिए आपको बताते हैं।
किसी भी देश की पुलिस या सेना दूसरे देश की सीमा में बिना अनुमति प्रवेश नहीं कर सकती, इसलिए बांग्लादेश की एजेंसियां भारत की सरजमीं पर आकर किसी भी तरह की गिरफ्तारी नहीं कर सकतीं।
इसके लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों और औपचारिकताओं का पालन करना अनिवार्य है, जो सीधे तौर पर भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के दायरे में आते हैं।
हसीना के खिलाफ अपराध, हत्या और हिंसक
बता दें कि भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि लागू की गई थी, जिसे 2016 में और भी सरल बनाया गया, जिससे दोनों देशों के अपराधियों को एक-दूसरे को सौंप सकें।
इस संधि में यह प्रावधान है कि किसी भी ऐसे व्यक्ति का प्रत्यर्पण किया जा सकता है, जिस पर कम से कम एक वर्ष की सजा वाले गंभीर आरोप हों।
शेख हसीना के मामले में मानवता के खिलाफ अपराध, हत्या और हिंसक दमन जैसे आरोप शामिल हैं, इसलिए वे कानूनी रूप से प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दायरे में आती हैं।
हालांकि, यह सिर्फ कागजी स्तर पर है, क्योंकि किसी व्यक्ति को प्रत्यर्पित करना पूरी तरह से राजनीतिक और राजनयिक निर्णय पर निर्भर करता है।
क्या कहता है ऑर्टिकल 7
सवाल यह भी है कि क्या भारत बांग्लादेश के अनुरोध को मानने के लिए बाध्य होगा? इसका उत्तर संधि के अनुच्छेद 7 और अनुच्छेद 8 में छिपा है।
अनुच्छेद 7 कहता है कि जिस देश में व्यक्ति मौजूद है, यदि वहां उसके खिलाफ कोई मामला लंबित है, तो उसे प्रत्यर्पित करने से इंकार किया जा सकता है।
शेख हसीना के मामले में भारत में उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है, इसलिए यह विकल्प भारत के लिए यह लागू नहीं होता।
हालांकि, अनुच्छेद 8 भारत को एक महत्वपूर्ण अधिकार देता है यदि भारत यह महसूस करे कि मामला न्याय के हित में नहीं है या आरोप राजनीतिक प्रकृति के हैं, तो वह किसी भी प्रत्यर्पण अनुरोध को ठुकरा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह प्रावधान कई बार संवेदनशील मामलों में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद यह नियम पूरी तरह से सरल नहीं है।
शेख हसीना पर आरोप
प्रत्यर्पण संधि में कुछ अपराधों को राजनीतिक अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है, जैसे हत्या, निर्मम दमन, लोगों का जबरन गायब होना और मानवता के खिलाफ अपराध।
दुर्भाग्य से, शेख हसीना पर लगे आरोप इसी गैर-राजनीतिक श्रेणी में आते हैं। यही कारण है कि महज राजनीतिक बदले की कार्रवाई कहकर भारत उन्हें आसानी से बचा नहीं सकता।
भारत को यह साबित करना होगा कि मामला वास्तव में राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है, जो कि बांग्लादेश की वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए चुनौतीपूर्ण है।
इसके बावजूद भारत के पास निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता है और अंतिम फैसला भारत सरकार की राजनीतिक व राजनयिक प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा।
बांग्लादेश अदालत के फैसले के बाद अब यह प्रक्रिया शुरू होगी कि ढाका भारत को औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध भेजेगा।
इसके बाद भारत का विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विभिन्न कानूनी निकाय पूरे मामले की समीक्षा करेंगे।
भारत चाहे तो निष्पक्ष जांच, राजनीतिक परिस्थिति, मानवाधिकार स्थिति और क्षेत्रीय स्थिरता को देखते हुए प्रत्यर्पण को ठुकरा सकता है।
ऐसे संवेदनशील मामलों में अंतिम फैसला हमेशा सरकार की मंशा, द्विपक्षीय संबंधों और अंतरराष्ट्रीय दबावों को ध्यान में रखकर ही लिया जाता है।
दक्षिण एशिया की राजनीति अब इस फैसले के बाद नई दिशा लेने वाली है और शेख हसीना का मामला आने वाले महीनों में भारत–बांग्लादेश संबंधों का सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है।

