CLOUD BURST : हाल ही के कुछ दिनों में हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई है। उत्तराखंड के धराली से लेकर हिमाचल के मंडी और जम्मू-कश्मीर के कठुआ–किश्तवाड़ तक लोग प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे हैं।

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तेज़ पानी मिट्टी और घरों को बहा ले जाता है
CLOUD BURST : बादल फटने से कुछ ही समय में छोटे क्षेत्र में 1000 मिलीलीटर से भी ज़्यादा बारिश हो जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब नमी से बने गर्म बादल पहाड़ों से टकराते हैं तो वे ठंडे होकर अचानक सारा पानी नीचे गिरा देते हैं।

यह पानी इतना तेज़ बहता है कि अचानक बाढ़ आ जाती है, जो मिट्टी, पत्थर और घरों को बहा ले जाती है। जब हिमालय जैसे ऊँचे पहाड़ बादलों को रोक लेते हैं तो नमी वाली हवाएं इनसे टकराकर बारिश का रूप लेती हैं।

गर्मी बढ़ने से बादलों में नमी ज़्यादा होती है, जिसकी वजह से बादल फट जाते हैं। पहाड़ों में ढलान होने से पानी तेज़ी से नीचे आता है। पेड़ों की कटाई के कारण मिट्टी कमजोर हो गई है, जिसके चलते वह भी मलबे के साथ बह जाती है।

सड़क निर्माण और बस्तियों का अंधाधुंध विस्तार पानी के प्राकृतिक बहाव को बाधित करता है। गर्म और ठंडी हवाओं का मिलना भी बादल फटने की घटनाओं को बढ़ाता है।
उत्तराखंड से लेकर कश्मीर तक प्राकृतिक आपदा से जूझते लोग
5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई। कुछ ही समय में मलबा और पानी ने घरों, दुकानों और सड़कों को बहा दिया।

कई लोगों की मौत हुई और 100 से ज़्यादा लोग लापता हो गए। यह गांव गंगोत्री यात्रा के कारण तीर्थयात्रियों का प्रमुख पड़ाव हुआ करता था।
हिमाचल के मंडी ज़िले में जुलाई से अब तक कई बार बादल फट चुके हैं। 17 अगस्त को द्रंग, बथेरी और उत्तरशाल में मूसलाधार बारिश ने घरों, गौशालाओं और सड़कों को नष्ट कर दिया। चंडीगढ़–मनाली राजमार्ग भी बंद हो गया और कई पुल बह गए, जिसके चलते लोगों को सुरक्षित स्थानों की ओर भागना पड़ा।

14 अगस्त 2025 को किश्तवाड़ के चशोती गांव में मचैल माता यात्रा के दौरान बादल फटने से आई बाढ़ में दर्जनों घर और दुकानें बह गए। 60 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और 200 से ज़्यादा लोग लापता हैं। कठुआ में भी भारी बारिश ने नदियों को उफान पर ला दिया।
मौसम विभाग के अनुसार, पहाड़ी इलाकों में बादल फटना आम है क्योंकि हवाएं और भौगोलिक परिस्थितियां मिलकर ऐसा माहौल बनाती हैं। ग्लेशियर झीलों के फूटने से भी बाढ़ आ सकती है। लेकिन अब तक इसका पूरी तरह से वैज्ञानिक कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है।

पर्यावरणविदों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
मौसम विभाग की चेतावनियों के अनुसार, खतरनाक क्षेत्रों से दूर रहना चाहिए। नदियों और नालों की सफाई के साथ मज़बूत ड्रेनेज सिस्टम बनाना आवश्यक है। स्थानीय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
वनों को बचाना और अंधाधुंध निर्माण रोकना होगा। डॉप्लर रडार और सैटेलाइट तकनीक से खतरे का समय रहते पता लगाना भी बेहद ज़रूरी है।