Trump Tariffs: अमेरिका ने अचानक भारत समेत कई देशों के खिलाफ एक तरफा 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम की दुनिया भर में आलोचना हो रही है।
अमेरिकी अदालत ने भी इसे गैरकानूनी करार दिया है, लेकिन इसके बावजूद भारत के लिए यह बड़ा आर्थिक झटका साबित हो रहा है। खासकर लेदर और अन्य लेबर-इंटेंसिव सेक्टर,
जो अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात करते थे, अब गंभीर संकट में फंस गए हैं। भारतीय निर्यातकों के लिए यह स्थिति रोजगार और उत्पादन दोनों पर असर डाल सकती है।
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Trump Tariffs: दूसरे देशों और बाजारों का रूख
केंद्र सरकार ने हालांकि इन उद्योगों को आश्वस्त किया है कि वे इस चुनौती का समाधान खोजने में जुटी है। सरकार ने साफ किया है कि अब केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय दूसरे देशों और नए बाजारों की ओर रुख किया जाएगा।
इस दिशा में रूस, यूरोपीय संघ और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर काम तेज़ किया गया है। साथ ही, चीन के साथ संबंधों में भी सुधार की कोशिशें दिखाई दे रही हैं।
चीन ने ट्रैरिफ को बताया गलत
भारत-चीन रिश्ते लंबे समय से उतार-चढ़ाव का सामना करते रहे हैं, लेकिन अमेरिकी टैरिफ संकट ने दोनों देशों को सहयोग का नया अवसर दिया है। चीन ने भी इस मुद्दे पर भारत का समर्थन करते हुए कहा है कि ट्रंप प्रशासन का 50 प्रतिशत शुल्क अनुचित है।
यह कदम अमेरिका की ओर से टैरिफ को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का उदाहरण है। चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने साफ कहा कि भारत और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को मिलकर इस चुनौती का मुकाबला करना चाहिए।
भारत और चीन की मजबूत दावेदारी
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दोनों देश आतंकवाद जैसी साझा चुनौतियों से प्रभावित हैं और एक-दूसरे के साथ सहयोग करके वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका और मज़बूत कर सकते हैं।
भारत और चीन का आर्थिक सहयोग न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था के लिए भी संतुलनकारी साबित हो सकता है।
कुल मिलाकर ट्रंप प्रशासन का यह एकतरफा टैरिफ निर्णय भारत के लिए कठिनाइयाँ लेकर आया है, लेकिन इसके साथ ही इसने नई रणनीतिक संभावनाओं का भी दरवाजा खोला है। भारत अब अपने निर्यातकों को सुरक्षित रखने और नए सहयोगियों की तलाश में सक्रिय है।
वहीं चीन के समर्थन ने संकेत दिया है कि अगर एशिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक मंच पर आती हैं तो अमेरिका की आर्थिक नीतियों का असर काफी हद तक कम किया जा सकता है।