प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बुधवार, 30 जुलाई 2025 को छत्तीसगढ़ में 550 करोड़ रुपये से अधिक के मेडिकल सप्लाई घोटाले के मामले में 18 स्थानों पर छापेमारी की।
यह कार्रवाई रायपुर, दुर्ग, भिलाई और आसपास के इलाकों में हुई। कुछ रिपोर्ट्स में घोटाले की राशि 650 करोड़ रुपये तक बताई गई है।
इस घोटाले का सीधा संबंध डायरेक्टरेट ऑफ हेल्थ सर्विसेस (DHS) और छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSCL) के वरिष्ठ अधिकारियों से है।
इन अधिकारियों के साथ ‘मोक्षित कॉर्पोरेशन’ नाम की एक निजी कंपनी भी इस घोटाले में शामिल पाई गई। यह पूरा घोटाला तब सामने आया जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे।
छापेमारी उन लोगों के घरों और कार्यालयों में की गई जो इस घोटाले से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े थे। इसमें सरकारी अधिकारी, मेडिकल सप्लायर, एजेंट और बिचौलिए शामिल हैं। ED ने CGMSCL के पूर्व डिप्टी मैनेजर कमलकांत पाटनवार के आवास पर भी छापा मारा, जो वर्तमान में जेल में हैं।
ED की कार्रवाई की पृष्ठभूमि तब बनी जब आर्थिक अपराध शाखा (EOW) को मोक्षित कॉर्पोरेशन से जुड़े कुछ दस्तावेज मिले। इन दस्तावेजों में मनी लॉन्ड्रिंग के प्रमाण पाए गए, जिसके बाद मामला प्रवर्तन निदेशालय तक पहुँचा और PMLA (धन शोधन निवारण अधिनियम) के तहत जाँच शुरू हुई।
घोटाले की समयरेखा और कंपनियों की भूमिका
ACB और EOW की प्रारंभिक जाँच में सामने आया कि जनवरी 2022 से अक्टूबर 2023 के बीच CGMSCL ने मोक्षित कॉर्पोरेशन और उसकी एक शेल कंपनी के साथ मिलकर करोड़ों का घोटाला किया। इस पूरे मामले की जाँच में अप्रैल 2025 में 18,000 पृष्ठों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई थी।
चार्जशीट में छह लोगों को आरोपी बनाया गया है—मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा, CGMSCL के अधिकारी बसंत कुमार कौशिक, छिरोड़ रौतिया, कमलकांत पाटनवार, डॉ. अनिल परसाई और दीपक कुमार बांधे।
कौशिक उस समय CGMSCL में जनरल मैनेजर (इक्विपमेंट) और डिप्टी मैनेजर (पर्चेज) के पद पर कार्यरत थे।
22 जनवरी को ACB/EOW ने इन लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। इनके अलावा चार कंपनियों को भी आरोपित बनाया गया, हरियाणा की रिकॉर्ड एंड मेडिकेयर सिस्टम (HSIIDC), मोक्षित कॉर्पोरेशन, CB कॉर्पोरेशन और श्री शारदा इंडस्ट्रीज।
कैसे हुआ घोटाला: फर्जी खरीद और बढ़े हुए दाम
जाँच में यह सामने आया कि मेडिकल उपकरण और रसायनों की खरीद में घोर अनियमितता बरती गई। कई उपकरण बिना किसी जाँच या आवश्यकता के खरीदे गए और उनकी कीमत कई गुना बढ़ा दी गई।
उदाहरणस्वरूप, एक EDTA ट्यूब, जिसकी बाजार कीमत मात्र 8.50 रुपये है, उसे CGMSCL ने मोक्षित कॉर्पोरेशन से 2,352 रुपये प्रति ट्यूब खरीदा।
ऐसे ही एक CBC मशीन, जिसकी बाजार कीमत करीब 5 लाख रुपये है, उसे 17 लाख रुपये में खरीदा गया। इतना ही नहीं, जो मेडिकल खरीद प्रक्रिया आमतौर पर महीनों में पूरी होती है।
उसे केवल 26 दिनों में निपटा दिया गया, जिससे पूरे सिस्टम में मिलीभगत का अंदेशा और पुख्ता हो गया।
घोटाले की विधानसभा में गूंज और जाँच एजेंसियों की सक्रियता
यह घोटाला छत्तीसगढ़ की विधानसभा में भी उठा। विपक्ष द्वारा सरकार पर गंभीर सवाल उठाए जाने के बाद ED और EOW की संयुक्त जाँच तेज हो गई।
इस जाँच का प्रमुख उद्देश्य था, सरकारी अधिकारियों और निजी कंपनियों के बीच सांठगांठ के साक्ष्य इकट्ठा करना, फर्जी दस्तावेजों की पहचान करना और यह जानना कि इस भ्रष्टाचार की जड़ें कहाँ तक फैली हैं।
ED की छापेमारी का यह दौर इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी संस्थानों के अंदर किस तरह निजी कंपनियों से मिलकर योजनाबद्ध तरीके से गड़बड़ियाँ की जाती हैं।
इस मामले ने राज्य में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है और अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या इसमें और भी बड़े नामों का खुलासा होगा।