चार्ली कर्क
राजनीतिक हत्याओं का पुराना इतिहास
सभ्यता के शुरुआती दौर से ही सत्ता संघर्ष में राजनीतिक हत्याएँ होती रही हैं। जूलियस सीज़र की हत्या से लेकर आधुनिक काल तक यह परंपरा समाज का हिस्सा रही है।
लेकिन अमेरिका में चार्ली कर्क की गोली मारकर हत्या ने लोकतंत्र की नींव और सुरक्षा की परिभाषा पर नया सवाल खड़ा कर दिया।
ऑनलाइन देखी गई भयावह घटना
विश्वविद्यालय में भाषण देते समय अचानक चली गोली उनके गले में लगी और कुछ ही सेकंड में उनकी मौत हो गई। दुनिया भर के लोग ऑनलाइन यह दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए। यह घटना बताती है कि किस तरह एक पल में किसी का जीवन समाप्त किया जा सकता है।
मीडिया पर उठते सवाल
कई मीडिया संस्थानों ने इस घटना की भयावहता को कम करके दिखाने की कोशिश की। तथाकथित ‘लेगेसी मीडिया’ ने खून-खराबे के दृश्य हटाए, जबकि असलियत जानना ज़रूरी था।
सच्चाई को छिपाना समाज को और गुमराह करता है और जनता को असली दुश्मन की पहचान से दूर रखता है।
मीठे शब्दों में छिपा असली दुश्मन
यह दुश्मन शांति, प्यार, सहानुभूति और सहिष्णुता जैसे आकर्षक नारों का इस्तेमाल करता है। लोकतंत्र की कमजोरियों का फायदा उठाकर असहमति को कुचलता है और विरोधियों को चुप कर देता है। चार्ली कर्क की हत्या पर उसका जश्न इस दोहरे चरित्र को और उजागर करता है।
जनता की संवेदनहीनता
जब लगातार मीठे शब्दों के जाल में समाज को उलझाया जाता है तो असली अपराध होने पर जन प्रतिक्रिया कमजोर पड़ जाती है।
हत्या जैसी घटनाएँ भी बड़े हिस्से को विचलित नहीं करतीं। केवल कुछ लोग सच्चाई कहने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें बहुमत अनदेखा कर देता है।
दुश्मन के बदलते नाम
यह ताक़त कई नामों से जानी जाती है, लेफ़्ट लिबरल, समाजवादी, मानवतावादी या भारत में सेक्युलर और आधुनिक।
चाहे नाम कुछ भी हो, इसका मक़सद परंपराओं और असहमति को मिटाना और समाज को अपनी विचारधारा के साँचे में ढालना है।
कर्क से असहमति और सहमति
चार्ली कर्क एक कट्टरपंथी ईसाई थे और उनके कई विचारों से असहमति थी, जैसे हथियारों पर रुख। लेकिन परिवारिक मूल्यों की रक्षा, यौन शोषण से बच्चों को बचाने और कट्टर इस्लाम पर आलोचना जैसी बातों में उनसे सहमति थी। इन्हीं कारणों से उनकी हत्या और भी गंभीर बनती है।
विनाशकारी मानसिकता का असर
कर्क के हत्यारों की विचारधारा किसी भी परंपरा, आस्था या सृजन में विश्वास नहीं करती। वे केवल विनाश करते हैं। यही प्रवृत्ति आज
‘वोक’ संस्कृति में भी दिखती है, जहाँ हर असहमत आवाज़ को हिंसा से दबा दिया जाता है। यह मानसिकता समाज को जड़ से खोखला कर देती है।
अमेरिका के लिए खतरे की घंटी
ट्रंप प्रशासन में प्रतिक्रिया ज़रूर होगी, लेकिन यह बहुत देर से और बहुत कम होगी। अमेरिका पहले से ही पतन की ओर बढ़ रहा है।
इतिहास गवाह है कि जैसे अलेक्ज़ांड्रिया में हाइपेशिया की हत्या के बाद मूर्तिपूजक संस्कृति ढह गई थी, वैसा ही प्रभाव अमेरिका पर भी हो सकता है।
भारत और हिंदुओं के लिए सबक
अमेरिका में बढ़ता आंतरिक संघर्ष आने वाले समय में कई सभ्यताओं को उसके अवशेषों पर कब्ज़ा करने का अवसर देगा।
हिंदुओं को चाहिए कि वे इस मौके का उपयोग करें और अमेरिका में अपनी जड़ें मज़बूत करें। यह भावी वैश्विक संघर्ष में एक मज़बूत आधार बनेगा।
सनातन धर्म का विस्तार ही समाधान
अगर अमेरिका में इस्लाम या वोक संस्कृति मज़बूत होती है तो हिंदुओं के लिए ख़तरा है। ईसाई प्रतिरोध भी हितकारी नहीं होगा। सही मार्ग यही है कि हिंदू वहाँ अपनी पकड़ बनाएँ।
केवल सनातन धर्म ही ऐसी स्थिति ला सकता है जहाँ किसी युवा पिता की केवल शब्दों के कारण हत्या न हो। दुनिया को सनातन छत्रछाया की ज़रूरत है और यह समय उसी ओर इशारा कर रहा है।