बसपा
बसपा का सियासी आधार लगातार सिमटता हुआ
बहुजन समाज पार्टी का राजनीतिक आधार लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है। विधानसभा से लेकर संसद तक पार्टी की मौजूदगी तेजी से घट रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा का केवल एक विधायक बचा है, जबकि विधान परिषद में उसका कोई भी प्रतिनिधि नहीं है।
संसद में प्रतिनिधित्व समाप्त होने की स्थिति
लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा का खाता नहीं खुल सका। राज्यसभा में पार्टी के एकमात्र सांसद रामजी गौतम हैं, जिनका कार्यकाल 2026 में समाप्त हो जाएगा। इसके बाद संसद के दोनों सदनों में बसपा का कोई भी सदस्य नहीं बचेगा।
2026 में संसद से विदाई तय
रामजी गौतम 2019 में राज्यसभा पहुंचे थे और 2026 में उनका छह वर्षीय कार्यकाल पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही संसद में बसपा की औपचारिक उपस्थिति समाप्त हो जाएगी। यह बसपा के राजनीतिक इतिहास में पहली बार होगा।
उत्तर प्रदेश से राज्यसभा का गणित
उत्तर प्रदेश विधानसभा की मौजूदा संख्या के अनुसार राज्यसभा की एक सीट के लिए 37 विधायकों का समर्थन जरूरी है। इस गणित में भाजपा आठ और समाजवादी पार्टी दो सीटें जीतने की स्थिति में है, जबकि बसपा नामांकन तक की स्थिति में नहीं है।
2027 पर टिकी संसद में वापसी की उम्मीद
वर्तमान हालात में बसपा के लिए राज्यसभा पहुंचना असंभव है। संसद में दोबारा पहुंचने के लिए पार्टी को 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 सीटें जीतनी होंगी। ऐसा न होने पर 2029 तक संसद में प्रतिनिधित्व संभव नहीं।
यूपी में कमजोर होती बसपा
उत्तर प्रदेश कभी बसपा की सबसे मजबूत सियासी जमीन रहा है। मायावती चार बार मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन आज पार्टी के पास केवल एक विधायक है। 2024 में विधान परिषद से भी बसपा बाहर हो चुकी है।
विधानसभा से लेकर संसद तक गिरावट
विधान परिषद, लोकसभा और अब राज्यसभा में बसपा की मौजूदगी समाप्त होने जा रही है। जनहित के मुद्दों पर संसद में पार्टी की आवाज बुलंद करने वाला कोई भी प्रतिनिधि नहीं बचेगा। इसे बसपा का अब तक का सबसे खराब दौर माना जा रहा है।
बसपा के इतिहास में पहली बार शून्य स्थिति
1984 में गठन के बाद से बसपा का संसद में कभी न कभी प्रतिनिधित्व रहा है। 1989 में पहली सफलता मिली थी और तब से पार्टी की आवाज संसद में मौजूद रही। नवंबर 2026 में पहली बार यह सिलसिला टूट जाएगा।
मायावती से शुरू हुआ संसदीय सफर
बसपा की पहली राज्यसभा सांसद मायावती बनी थीं, जिन्हें 1994 में उच्च सदन भेजा गया था। इसके बाद लगातार किसी न किसी रूप में पार्टी का प्रतिनिधि संसद में रहा। रामजी गौतम के रिटायर होते ही यह परंपरा समाप्त हो जाएगी।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खतरे में
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर गिरकर 2.04 प्रतिशत रह गया। कोई भी सीट न जीत पाने के कारण राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने का खतरा पैदा हो गया है। चुनाव आयोग के मानकों पर बसपा फिलहाल खरी नहीं उतरती।
सियासी संकट गहराता हुआ
चार या उससे अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी का दर्जा न होने से बसपा की स्थिति और कमजोर हुई है। उत्तर प्रदेश के अलावा किसी अन्य राज्य में पार्टी आवश्यक मानक पूरे नहीं कर पाई है। इससे बसपा का राजनीतिक संकट और गहरा गया है।

