बच्चों का टूटा मन: कुछ ख़बरें सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। जयपुर की चौथी क्लास की वो बच्ची… उसकी ख़ामोशी पूरे समाज पर एक सवाल है—आख़िर हमारे बच्चे क्यों खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं? और क्यों बच्चे नहीं बता पाते माता पिता को खुल कर मन की बात, क्यों आखिर क्यों?
वजह :
आज बच्चों के छोटे-छोटे कंधों पर वो बोझ रख दिया गया है, जिसके लिए उनकी उम्र नहीं बनी है। स्कूल का प्रेशर, तुलना का डर, और घर की उम्मीदें—ये सब मिलकर उन्हें अंदर ही अंदर चुपचाप तोड़ रहे हैं। कम उम्र में इतना प्रेशर किसी छोटे बच्चे के लिए बेहद गंभीर बात है।
बच्चों का टूटा मन: क्यों नहीं सुन पा रहे हम बच्चों की वो छोटी-छोटी पुकारें?
बच्चों का टूटा मन: हर बच्चा अपनी मासूमियत में जीना चाहता है। वो गलतियाँ करना चाहता है, सीखना चाहता है, हँसना चाहता है। लेकिन आज के माहौल में बच्चे यह सोचने लगते हैं कि गलती की कोई जगह नहीं है…
कहीं माँ-पापा निराश न हो जाए,कहीं टीचर डांट न दें, कहीं दोस्तों से पीछे न रह जाएँ। ये डर एक दिन इतना बड़ा हो जाता है कि वह बच्चे की दुनिया पर भारी पड़ जाता है।
आजकल बच्चे इस डर के चलते दुनियां से जाने तक की बात सोच लेते है, जिस उम्र में पहले के लोग दर्द तकलीफ नहीं जानते थे वहीं आज के बच्चें सब महसूस कर रहे है।
बच्चों का टूटा मन: घर और स्कूल के बीच बच्चे कहीं खो न जाएं
स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य को समझने वाले काउंसलर की कमी है। बहुत से बच्चे स्कूल के माहौल से डरते हैं लेकिन कह नहीं पाते। घर पर भी कभी-कभी माता-पिता की व्यस्तता और मोबाइल का शोर बच्चों की आवाज़ दबा देता है। और यहीं सबसे बड़ी जिम्मेदारी घर की है—जहाँ बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है।
बच्चों को घर में क्या-क्या दिया जाना चाहिए जाने विस्तार से-
बच्चों का टूटा मन: आज जब दुनिया तकनीक में दौड़ रही है, बच्चे मोबाइल की रोशनी में खोते जा रहे हैं। लेकिन हम चाहें तो उन्हें वापस उस दुनिया में ले जा सकते हैं जहाँ बचपन महकता था।
मोबाइल की जगह बच्चों को सुनाई जाए दादी–नानी वाली पुरानी कहानियाँ
बच्चों का टूटा मन: वो कहानियाँ जिनमें सीख होती थी, प्यार होता था, सुरक्षा का एहसास होता था। बच्चे कहानी सुनते-सुनते अपनी बात खुद ही खोल देते हैं
मिट्टी से जुड़ाव कभी कम न होने दिया जाए
टेक्नोलॉजी जरूरी है, लेकिन बच्चों के पैरों में मिट्टी लगे, हाथों में खेल हो, हवा में दौड़ने का आनंद हो— ये भी उतना ही जरूरी है। मिट्टी बच्चों का मन मजबूत करती है, उनका डर कम करती है।
खेल-कूद और बाकि के बच्चों से मेलजोल
बच्चा अकेला न रहे। उसके दोस्त बनें, वो ग्रुप में खेले, हँसे, गिरकर उठना सीखे। ये सब चीजें उसका आत्मविश्वास बढ़ाती हैं।
माँ का पहला कदम — बच्चा घर आकर हर बात बेझिझक बताए
हर माँ को ये सीख देनी जरूरी है:
“स्कूल की कोई भी बात, टीचर की डांट, किसी की टोकाटाकी, दोस्त का बुरा व्यवहार—सब घर आकर बताओ।”
ताकि बच्चा यह न माने कि कुछ बातें छुपानी चाहिए। उसे महसूस हो कि घर उसका सबसे सुरक्षित स्थान है।
Good Touch और Bad Touch की साफ़ समझ
बच्चों को यह जरूर बताया जाए कि कौन सा स्पर्श सुरक्षित है और कौन सा गलत। उन्हें सिखाया जाए कि गलत चीज़ को सहना नहीं, उसके खिलाफ आवाज़ उठानी है,
और तुरंत माँ-पापा या भरोसेमंद बड़े को बताना है।
यह बच्चों की सुरक्षा और आत्मविश्वास, दोनों के लिए जरूरी है।
बच्चों का टूटा मन: एक सच्चाई जिसे हमें स्वीकारना होगा
बच्चों की आत्महत्या कोई एक घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
ये बताती है कि बच्चे आज भी उतनी ही भावनात्मक दुनिया में रहते हैं—जहाँ प्यार, ध्यान, और बातचीत की सबसे ज़्यादा जरूरत है।
अगर हम बच्चों का मन नहीं समझ पाए, उनकी आवाज़ नहीं सुन पाए, तो हम एक जिंदगी खो देंगे।
बच्चों को सुरक्षित करने के लिए बड़ा बदलाव नहीं चाहिए— बस माँ-बाप का थोड़ा समय,थोड़ी समझ, कुछ पुराने किस्से कहानियां जो कि उन्होंने सुनी होंगी अपने घर के बड़ों से, और बहुत सारा प्यार।
बच्चा अगर एक बार समझ जाए कि उसके पास कहने के लिए कोई जगह है, तो वह कभी खुद को अकेला नहीं समझेगा और कभी खुद को दुनिया से हटाने की कोशिश नहीं करेगा।

