Sunday, May 18, 2025

क्या ब्रह्मोस ने अमेरिका के बेस को छू लिया? भारत-पाक-अमेरिका के अदृश्य परमाणु खेल का पर्दाफाश

8-9 मई की रात दक्षिण एशिया में कुछ ऐसा घटित हुआ, जिसने न केवल पाकिस्तान की सियासी धड़कनों को रोक दिया, बल्कि अमेरिका तक को बार-बार ‘सीजफायर’ का श्रेय लेने पर मजबूर कर दिया। क्या वास्तव में भारत ने पाकिस्तान के परमाणु गोदाम को निशाना बनाया था या यह हमला अमेरिका की किसी ‘छुपी हुई’ सैन्य संपत्ति पर पड़ गया? इस पूरे घटनाक्रम में जितना कुछ सामने आया, उससे कहीं ज्यादा कुछ छुपाया गया। यही छुपे हुए बिंदु हमें उस भू-राजनीतिक खेल तक ले जाते हैं, जिसमें अमेरिका, पाकिस्तान और भारत तीनों अपने-अपने मोहरे चला रहे हैं।

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ऐतिहासिक संदर्भ और अमेरिकी स्वार्थ

पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध 1947 से ही सामरिक स्वार्थों की बुनियाद पर टिके रहे हैं। 1971 में जब भारत ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बाँटकर बांग्लादेश को स्वतंत्र कराया था, तब अमेरिका ने अपने सातवें बेड़े को भारत को डराने के लिए भेजा था। भारत ने इसे झेला, और तब से यह साफ हो गया कि पाकिस्तान अमेरिका के लिए सिर्फ एक इस्लामिक देश नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में उसका “रणनीतिक एजेंट” है।

1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी अमेरिका ने पाकिस्तान को लेकर वही नीति अपनाई — युद्ध को सीमित रखना, भारत को पाक अधिकृत क्षेत्र में न बढ़ने देना और विश्व समुदाय में ‘शांतिदूत’ की छवि गढ़ना।

पाकिस्तान का परमाणु खेल और अमेरिकी चुप्पी

जिस पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कर्ज में डूबी हुई है, जिस देश के पास खुद के लिए रोटी नहीं है, वहाँ 175 से ज्यादा परमाणु बम बन जाना क्या किसी अजूबे से कम है? और यह भी तब जब अमेरिका की सख्त परमाणु निगरानी एजेंसियां पूरी दुनिया में कहीं भी परमाणु गतिविधि होते ही हरकत में आ जाती हैं।

क्या यह संभव है कि अमेरिका को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की भनक न लगी हो? बिल्कुल नहीं। सच तो यह है कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम अमेरिका की निगाहों के सामने ही पनपा, अमेरिका की ही छत्रछाया में फलता-फूलता रहा। ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी को पाकिस्तान में पालना और फिर अमेरिका का वहाँ जाकर ‘शिकार’ करना, इस गहरी सांठगांठ को और उजागर करता है।

ब्रह्मोस और 8-9 मई की रात की असामान्य चुप्पी

आपके द्वारा उठाया गया यह बिंदु सबसे अधिक ध्यान देने योग्य है। जब सारे पाकिस्तानी चैनलों की आवाजें अचानक धीमी पड़ जाएं, जब अमेरिका बिना किसी औपचारिक युद्ध के बार-बार सीजफायर का श्रेय लेने लगे, और पाकिस्तान के शीर्ष जनरल को रातों-रात हटाया जाए — तो यह स्पष्ट संकेत है कि कोई “अघोषित झटका” लग चुका है।

भारत की ब्रह्मोस मिसाइल के परीक्षणों और परिचालन तैनाती को लेकर पाकिस्तान और अमेरिका दोनों लंबे समय से सतर्क हैं। ऐसे में यदि अनजाने में या रणनीतिक तौर पर किसी ब्रह्मोस ने अमेरिका के किसी गुप्त अड्डे या संपत्ति को छू लिया हो, तो अमेरिका की यह “सीजफायर राजनीति” समझ में आती है।

A digitally painted scene in a 16:9 aspect ratio depicts a symbolic geopolitical standoff. On the left, Indian Prime Minister Narendra Modi stands confidently, dressed in a cream kurta with a saffron stole. Behind him, Bharat Mata is shown as a glowing figure holding a laptop in one hand and a missile in the other, with additional elements like an ISRO rocket, a Rafale jet, Indian farmers, and the Statue of Unity surrounding them, all illuminated in warm saffron tones. On the right, former U.S. President Donald Trump stands in a dark suit and red tie, accompanied by a large bald eagle clutching dollar bills and defense contracts. Behind Trump, shadowy figures labeled "LOBBYING", a map outline of China, and Pakistan’s flag are subtly illustrated, symbolizing hidden geopolitical forces. A bright lightning crack runs vertically between them, representing tension and division. The background features a dark world map with glowing trade routes, while contrasting saffron and blue ambient lighting emphasizes the rising global rivalry. डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका

अमेरिका का दोहरा खेल और पाकिस्तान की गूंगी सहमति

अमेरिका एक ओर भारत को स्ट्रेटेजिक पार्टनर बताता है, QUAD और Indo-Pacific Strategy में भारत को शामिल करता है, लेकिन हर बार पाकिस्तान को बचाने के लिए नए नैरेटिव भी गढ़ता है। भारत के हर प्रधानमंत्री दौरे के बाद पाकिस्तान पर ‘सॉफ्ट स्टैंड’ लेना अमेरिका की आदत बन चुकी है।

पाकिस्तान को न तो रूस की तरह सख्त आर्थिक प्रतिबंध मिलते हैं, न ही उत्तर कोरिया की तरह वैश्विक अलगाव। इससे साफ है कि पाकिस्तान अमेरिका की आँखों में एक ‘प्रॉक्सी स्टेट’ है, जिसे वह कभी भी भारत के खिलाफ मोहरे की तरह इस्तेमाल कर सकता है।

अमेरिका के दक्षिण एशिया में ‘छिपे अड्डे’ और भारत की चुनौती

पाकिस्तान में अमेरिकी गतिविधियाँ कोई नई बात नहीं। ओसामा के ठिकाने से लेकर कराची पोर्ट पर अमेरिकी उपस्थिति तक सब कुछ सामने आ चुका है। क्या यह संभव नहीं कि पाकिस्तान में अमेरिका के ऐसे गुप्त अड्डे हों जहाँ ब्रह्मोस जैसी मिसाइल का “अघोषित संपर्क” हो गया हो? यही वह बिंदु है जहाँ से अमेरिका की बेचैनी शुरू होती है।

अमेरिकी भू-राजनीतिक चाल: पाकिस्तान की ढाल बनना और भारत को ‘नियंत्रित साझेदार’ बनाए रखना

यह कोई संयोग नहीं कि अमेरिका ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद, सैन्य सहायता और राजनयिक बचाव की नीति कभी नहीं छोड़ी। अमेरिका पाकिस्तान को अपनी जरूरत का “कंट्रोल रूम” बनाए रखना चाहता है। भारत को वह एक सीमित साझेदार के रूप में देखता है, जो कभी भी अमेरिका के हितों के खिलाफ पूरी तरह स्वतंत्र न हो सके।

भारतीय कूटनीति की अग्निपरीक्षा

इस पूरी रणनीति में भारत की कूटनीति की परीक्षा है। क्या भारत अमेरिका की ‘रणनीतिक चमक’ में खो जाएगा या अपने स्वाभिमान और वास्तविक स्वतंत्र विदेश नीति को कायम रखेगा? अमेरिका से मित्रता भारत की जरूरत हो सकती है, लेकिन अमेरिका के दोहरे मापदंडों को उजागर करना भारत का कर्तव्य है।

समाधान और भारतीय नीति दिशा

  1. रणनीतिक संप्रभुता की पुनर्पुष्टि: भारत को अपनी रक्षा और विदेश नीति को अमेरिका या किसी अन्य शक्ति की स्वीकृति से संचालित नहीं होने देना चाहिए।
  2. स्वदेशी सैन्य तकनीक को बढ़ावा: ब्रह्मोस जैसे कार्यक्रमों को और उन्नत बनाकर किसी भी दबाव में न झुकने का संकल्प।
  3. अमेरिका से जवाबदेही की माँग: भारत को अमेरिका से स्पष्ट करना चाहिए कि यदि दक्षिण एशिया में कोई अमेरिकी अड्डा है तो उसकी जानकारी साझा करे और अपनी उपस्थिति को पारदर्शी बनाए।
  4. वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान-अमेरिका गठजोड़ का पर्दाफाश: पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और आतंकवादी नेटवर्क को लेकर अमेरिका की दोहरी नीति को विश्व मंचों पर बेनकाब करना।
  5. स्वतंत्र एशियाई शक्ति बनना: भारत को अमेरिका या चीन की ‘गुटीय राजनीति’ से बाहर निकलकर स्वतंत्र एशियाई शक्ति के रूप में अपनी छवि बनानी होगी।

समापन

8-9 मई की रात भले ही खबरों में ‘सीजफायर’ बनकर आई हो, लेकिन इसके पीछे एक ऐसा खेल चल रहा है जो भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, अमेरिका की असली मंशा और पाकिस्तान की परजीवी सत्ता को उजागर करता है।

क्या भारत इस खेल को समझेगा? क्या अमेरिका भारत को अपनी ‘बोलती बंदूक’ बनाए रखने में सफल होगा? या फिर भारत अपनी रणनीतिक आत्मनिर्भरता की राह पर डटे रहने का साहस दिखाएगा?
भारत को इन सवालों का उत्तर देना ही होगा, नहीं तो दक्षिण एशिया बार-बार इसी झूठे ‘सीजफायर’ की चक्की में पिसता रहेगा।

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