Bihar: बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार, 1 सितंबर 2025 को अहम सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि इस बार वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने से ज्यादा नाम हटाने के लिए आवेदन आ रहे हैं।
आयोग की ओर से दी गई इस जानकारी पर सुप्रीम कोर्ट के जज भी हैरान रह गए और उन्होंने पूछा कि आखिर राजनीतिक दल नाम हटवाने के आवेदन क्यों दे रहे हैं।
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Bihar: आपत्ति दर्ज कराने की सीमा बढ़ाएं
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में जिन लोगों के नाम छूट गए हैं, उनके लिए आपत्ति दर्ज कराने की समयसीमा बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही आधार कार्ड को अपर्याप्त दस्तावेज मानकर आवेदन खारिज नहीं किए जाएं।
उनका कहना था कि कई लोग बाढ़ जैसी समस्या से जूझ रहे हैं, ऐसे में उन्हें पर्याप्त समय और मौका दिया जाना चाहिए।
100–120 आवेदन आए
चुनाव आयोग की ओर से एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने इन मांगों का विरोध करते हुए कहा कि अगर समयसीमा बढ़ाई गई तो चुनावी प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होगी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि राजनीतिक दलों की ओर से नाम जुड़वाने के लिए मुश्किल से 100–120 आवेदन आए हैं,
लेकिन नाम हटाने के लिए बहुत ज्यादा आवेदन किए गए हैं। द्विवेदी के मुताबिक, यह साबित करता है कि आयोग की प्रक्रिया सही ढंग से काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि कई लोग खुद आकर बता रहे हैं कि उनका नाम किसी और जगह दर्ज है या किसी की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए हटाने का आवेदन किया जा रहा है।
बाढ़ की वजह से लोगों को प्रक्रिया में दिक्कत
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब वोटर खुद नाम हटवाने की प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं, तो राजनीतिक दलों की ओर से ऐसे आवेदन देने का क्या कारण है। कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति वाकई चौंकाने वाली है।
द्विवेदी ने यह भी स्पष्ट किया कि 1 सितंबर के बाद भी लोग आपत्ति या दावा दाखिल कर सकते हैं, लेकिन उन पर विचार SIR की अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि तक वोटर लिस्ट में नाम जुड़ते रह सकते हैं, यानी किसी को मतदान से वंचित नहीं किया जाएगा।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने भी कहा कि इसमें कोई दिक्कत नहीं है और लोग आपत्ति दर्ज कर सकते हैं।
सुनवाई में द्विवेदी ने यह भी तर्क दिया कि एक NGO (ADR) बिहार के हालात को लेकर कोर्ट में दावा कर रहा है कि बाढ़ की वजह से लोगों को प्रक्रिया में दिक्कत हो रही है,
लेकिन जमीनी स्तर पर लोग खुद आगे आकर भागीदारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को नोटिस भेजकर यह भी बताया जा रहा है कि उनके दस्तावेजों में क्या कमी है।
आधार का दर्जा नहीं बढ़ाया जा सकता
आधार कार्ड को प्रमाणपत्र के तौर पर मानने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि आधार को जितना दर्जा कानून में दिया गया है, उससे ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता।
प्रशांत भूषण ने भी कहा कि वह केवल उतना ही दर्जा चाहते हैं, उससे ज्यादा नहीं। इस पूरी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी चिंता यही रही कि राजनीतिक दल आखिर नाम जुड़वाने की बजाय हटवाने के पीछे क्यों पड़े हैं।
यह सवाल आने वाले दिनों में बिहार की चुनावी राजनीति में भी बहस का बड़ा मुद्दा बन सकता है।