Thursday, November 21, 2024

Citizenship Act S.6A: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,बांग्लादेश से भारत आए शरणार्थियों को मिलेगी नागरिकता

Citizenship Act S.6A: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक ईस्ट पाकिस्तान से असम आए लोगों की नागरिकता बनी रहेगी। उसके बाद आए लोग अवैध नागरिक माने जाएंगे।

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गुरुवार (17 अक्टूबर 2024) को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने नागरिकता कानून की धारा 6A पर महत्वपूर्ण सुनवाई की। इस सुनवाई में, पांच जजों की पीठ ने असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में किए गए संशोधन के तहत धारा 6A की संवैधानिक वैधता को मान्यता दी।

सुनवाई का निर्णय
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने बहुमत से यह फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।

मुख्य न्यायाधीश का वक्तव्य

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि बहुमत का फैसला यह है कि नागरिकता कानून की धारा 6A संवैधानिक रूप से उचित है। जस्टिस पारदीवाला ने इसके खिलाफ अपनी असहमति जताई। इस निर्णय के अनुसार, 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से असम में आए लोगों की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है। आंकड़ों के अनुसार, असम में 40 लाख अवैध प्रवासी हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में उनकी संख्या 57 लाख है। असम की छोटी जनसंख्या को देखते हुए, वहां के लिए अलग कट ऑफ डेट बनाना आवश्यक माना गया।

कट ऑफ डेट का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट सही है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि धारा 6A असंवैधानिक है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 की तुलना में नागरिकता के लिए अलग-अलग तिथियों का निर्धारण करती है। इस पर कोर्ट ने कहा कि हर नागरिक को भारत के कानून और संविधान का पालन करना अनिवार्य है।

कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकता प्रदान करने के लिए निष्ठा की शपथ का अभाव कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि धारा 6A स्थायी रूप से लागू नहीं होती है, और इस पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहते।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने 1985 के असम समझौते और नागरिकता कानून की धारा 6A को 4:1 के बहुमत से सही ठहराया है, जिससे असम में आए बांग्लादेशी नागरिकों की नागरिकता को सुरक्षित रखा गया है।

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