Bhopal: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बना ऐशबाग रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) अपने 90 डिग्री मोड़ को लेकर देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। इस ब्रिज को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर मीम्स बन रहे हैं और लोग इसे इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी चूक बता रहे हैं।
कई यूज़र्स ने इसे “आठवां अजूबा” तक करार दे दिया है। ट्रोलिंग और आलोचना का यह सिलसिला इतना बढ़ गया कि अब सरकार को इस ब्रिज की डिजाइन में बदलाव की दिशा में कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है।
ब्रिज को अब दोबारा डिजाइन किया जाएगा ताकि उसकी बनावट को सुरक्षित और व्यावहारिक बनाया जा सके।
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Bhopal: रेलवे ने PWD को दी चेतावनी
इस पूरे मामले में सबसे गंभीर बात यह है कि रेलवे ने इस पुल के निर्माण से पहले ही लोक निर्माण विभाग (PWD) को चेतावनी दी थी कि इस डिजाइन में गंभीर तकनीकी खामियां हैं।
14 अप्रैल 2024 को रेलवे के इंजीनियरों ने लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता को पत्र लिखकर स्पष्ट किया था कि ऊंचाई पर बनाया जा रहा 90 डिग्री का तीखा मोड़ न केवल यात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरा है,
बल्कि इससे पूरी इंजीनियरिंग बिरादरी की छवि पर भी आंच आएगी। रेलवे ने यह भी कहा था कि यदि इस डिजाइन में सुधार नहीं किया गया, तो भविष्य में इस पुल के लिए इंजीनियरों को आलोचना और मजाक का सामना करना पड़ेगा।
90 डिग्री के पुल से होगी दुर्घटनाएं
रेलवे की इस चेतावनी को पीडब्ल्यूडी ने नजरअंदाज कर दिया और पुल का निर्माण उसी पुराने डिजाइन पर शुरू कर दिया गया। परिणामस्वरूप अब जब ब्रिज लगभग बनकर तैयार है, उसकी तीखी और असामान्य डिजाइन सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
लोग पूछ रहे हैं कि क्या इस तरह के निर्माण कार्यों में किसी तरह की समीक्षा या गुणवत्ता जांच नहीं होती। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिज के इस प्रकार के 90 डिग्री मोड़ पर वाहन नियंत्रित रखना बेहद मुश्किल होता है और यह दुर्घटनाओं को निमंत्रण दे सकता है।
रेलवे से ढाई से तीन फीट जमीन की मांग
अब जबकि ब्रिज को लेकर जनभावनाएं भड़क चुकी हैं, सरकार और विभागों ने सुधार की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पीडब्ल्यूडी ने रेलवे से ढाई से तीन फीट जमीन की मांग की है ताकि ब्रिज के तीखे मोड़ को थोड़ा गोलाकार रूप दिया जा सके।
इस बदलाव के बाद वाहन चालकों के लिए मोड़ पर नियंत्रण बनाना आसान होगा और संरचना भी अधिक सुरक्षित हो सकेगी। हालांकि यह देखना बाकी है कि यह बदलाव कब तक लागू होता है और इसके लिए कितना समय और पैसा खर्च होगा।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि सरकारी परियोजनाओं में तकनीकी सलाह को किस हद तक गंभीरता से लिया जाता है। यदि रेलवे की समय पर दी गई चेतावनी पर अमल किया गया होता,
तो न सिर्फ इंजीनियरिंग का मजाक बनने से रोका जा सकता था, बल्कि एक सुरक्षित और व्यावहारिक पुल भी जनता को मिल सकता था।
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