ब्रिक्स और क्वाड की वास्तविकता
हाल के दिनों में भारत और चीन के बीच बढ़ते संपर्कों को देखते हुए विशेषज्ञ ‘रिक्स’ या ‘ब्रिक्स’ के सशक्त गठबंधन की भविष्यवाणी कर रहे हैं। किंतु सच्चाई यह है कि ऐसा होना अत्यंत कठिन है।
मोदी सरकार की विदेश नीति का मूल आधार संतुलन हेतु प्रतिसंतुलन पर टिका हुआ है।
अपरिहार्यता की चाबी और बड़े खिलाड़ी
विश्व की बड़ी शक्तियों के पास अपनी-अपनी मजबूती है। अमेरिका तकनीकी श्रेष्ठता, सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और यूरोपीय देशों का समर्थन रखता है।
रूस के पास परमाणु हथियार, ऊर्जा संसाधन और चीन जैसा विशाल खरीदार है। चीन 18 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और रेयर अर्थ मिनरल्स पर नियंत्रण रखता है।
भारत की स्थिति और सबसे बड़ी ताकत
भारत के पास न तो हथियारों में पूर्ण आत्मनिर्भरता है और न ही जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त विकसित अर्थव्यवस्था।
फिर भी भारत की असली ताकत उसका विशाल मध्यमवर्गीय उपभोक्ता बाजार है। यही ताकत उसकी कमजोरी भी बन जाती है क्योंकि वैश्विक शक्तियां इसी बाजार पर नज़र गड़ाए बैठी हैं।
उपभोक्ता बाजार का रूपक और दबाव
भारत की स्थिति उस पिता जैसी है जिसकी एक सुंदर और दूसरी अपाहिज बेटी है। मध्यम वर्ग वह सुंदर लड़की है, जबकि किसान, मजदूर और गरीब तबके अपाहिज बेटी।
अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार को कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए खोल दे, वहीं चीन सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स और भू-राजनीतिक रियायतें चाहता है।
ट्रम्प काल और विशेषज्ञों की भूल
यह दुविधा ट्रम्प के प्रथम कार्यकाल में भी थी। बिडेन शासन में ट्रम्प से मिलने से इनकार मोदी की गलती थी, किंतु उसका प्रतिशोध ट्रम्प पहले ही व्हाइट हाउस में औपचारिक स्वागत घटाकर ले चुके थे।
आज यदि अमेरिका क्वाड को दांव पर लगाकर भारत पर दबाव बना रहा है तो इसके पीछे गहरे कारण हैं।
पश्चिमी प्रवृत्ति और चीन का उदय
पश्चिमी ताकतें सदियों से उभरती शक्तियों को मिलकर दबाती रही हैं, चाहे वह सोवियत संघ हो या जापान। चीन ने इस दौरान कोकून में रहकर विकास किया और जब ड्रेगन बनकर निकला तो 2007 में क्वाड का गठन हुआ।
किंतु वास्तविक रूप से क्वाड 2014 के बाद भारत की शक्ति वृद्धि से सक्रिय हुआ।
भारत के उदय से अमेरिकी चिंता
मोदी सरकार के आते ही भारत आर्थिक व सैन्य रूप से तेज़ी से उभरा। अमेरिकी थिंक टैंक भारत को चीन के विरुद्ध मोहरा बनाना चाहता था, परंतु ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति ने उन्हें शंकित किया।
ऑपरेशन सिंदूर और भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति ने अमेरिका को भयभीत कर दिया कि कहीं भारत ही नई चुनौती न बन जाए।
पाकिस्तान, चीन और अविश्वसनीयता
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान में अमेरिकी परमाणु अड्डे के खुलासे ने चीन को विचलित किया। पाकिस्तान की अविश्वसनीयता और सी-पैक में फंसा निवेश चीन के लिए समस्या बन गया। फिर भी सीमा विवाद और तिब्बत के कारण भारत-चीन के रिश्तों में स्थिरता संभव नहीं।
वैश्विक समीकरण और भारत की स्थिति
आज भारत को अमेरिका-यूरोप, रूस, चीन, जापान, पाकिस्तान और मुस्लिम देशों के बीच संतुलन साधना पड़ रहा है। प्राकृतिक सहयोगी केवल जापान और इजरायल हैं, किंतु वहां भी पूर्ण सामंजस्य नहीं है।
भारत का मूल उद्देश्य पाकिस्तान का विखंडन और गिलगित-बाल्टिस्तान पर नियंत्रण है।
विदेश नीति का वास्तविक सार
विदेश नीति का आधार राष्ट्रीय स्वार्थ है, न कि निजी भावनाएं। मोदी आज अमेरिका, चीन, रूस या इजरायल से गले मिल सकते हैं और कल वही उनसे दूरी बनाकर दूसरे से समझौता कर सकते हैं।
यदि भारत का राष्ट्रीय हित साधा जा रहा हो। यही प्रतिसंतुलन की नीति का सार और भारत की कूटनीतिक मजबूरी है।