भैरप्पा
लेखक का धर्म केवल सत्य कहना होता है, चाहे वह कटु हो या मधुर। इसी मार्ग पर चलने वाले महान साहित्यकार एस.एल. भैरप्पा आज हमारे बीच नहीं रहे। उनकी मृत्यु से भारतीय साहित्य, संस्कृति और राष्ट्रवादी चिंतन जगत में गहरी शून्यता पैदा हो गई है।
भैरप्पा उन लेखकों में थे जिन्होंने कभी लोकप्रियता या पुरस्कारों के लिए सत्य से समझौता नहीं किया। दशकों तक विचारधारा आधारित राजनीति ने उन्हें उपेक्षित रखा। लेकिन समय बदला, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी प्रतिभा को सम्मान देते हुए उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से अलंकृत किया।
प्रधानमंत्री की श्रद्धांजलि और संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया मंच X पर लिखा कि भैरप्पा जी ने भारतीय आत्मा को गहराई से झकझोरा। उन्होंने कन्नड़ साहित्य को समृद्ध किया और पीढ़ियों को सोचने, प्रश्न करने तथा समाज से गहरे जुड़ने के लिए प्रेरित किया। मोदी ने कहा कि उनका इतिहास और संस्कृति के प्रति जुनून सदैव प्रेरणा देगा।
प्रधानमंत्री के श्रद्धास्पद शब्द केवल संवेदना नहीं, बल्कि यह भी बताते हैं कि युवाओं को भैरप्पा से क्या सीखना चाहिए। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सत्य को निडर होकर कहना ही साहित्यकार का सर्वोच्च कर्तव्य है। राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत उनके विचार आज भी युवाओं के लिए पाथेय हैं।
सत्य के साधक और जीवन यात्रा
1934 में कर्नाटक के एक छोटे कस्बे में जन्मे भैरप्पा ने 90 वर्ष का लंबा और यशस्वी जीवन जिया। उन्हें 1960 के बाद का सर्वश्रेष्ठ भारतीय उपन्यासकार माना जाता है। उन्होंने राष्ट्रजीवन की गहरी सच्चाइयों और समाज में चल रहे वैचारिक संघर्षों को निर्भीकता से प्रस्तुत किया।
उनके लेखन में हिंदुत्व विरोधी सत्ता-तंत्र और कांग्रेस शासनकाल के दौरान समाज में फैलाई गई घृणा और शत्रुता का गहन चित्रण है। उन्होंने हर पाठक और साहित्यकार के लिए सत्य और संतुलन का ऐसा दृष्टिकोण दिया, जो आधुनिक भारतीय उपन्यासों में दुर्लभ है।
आवरण : कठोर ऐतिहासिक सच का दस्तावेज
भैरप्पा का ऐतिहासिक उपन्यास आवरण उनकी सबसे प्रसिद्ध और कालजयी रचना है। इसमें उन्होंने उन कठोर ऐतिहासिक तथ्यों को सामने रखा जिन्हें भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग ने सदियों तक दबाने का प्रयास किया। यह सर्जनात्मक नैतिकता का ऐसा उदाहरण है जिसे शायद ही किसी और ने दिखाया।
इस उपन्यास में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किए गए अमानवीय अत्याचारों, बर्बरता और अपमानजनक घटनाओं का विवरण पृष्ठ दर पृष्ठ मिलता है। हिंदी साहित्य में जहां तुष्टिकरण और इतिहास का विकृतिकरण आम रहा, वहां आवरण ने सच को निडर होकर उद्घाटित किया।
पाठकों का मानना है कि आवरण को पढ़े बिना भारतीय इतिहास और साहित्य की वास्तविक समझ अधूरी रहती है। इसकी गंभीरता और प्रामाणिकता ने इसे समकालीन भारतीय साहित्य की सबसे सशक्त कृतियों में स्थान दिया।
भारतीय चिंतन जगत के परशुराम
भैरप्पा को भारतीय मनीषा और चिंतन जगत का परशुराम कहा जाता है। उनकी कलम ने उस दौर में भी बिकने से इनकार किया जब अनेक लेखक सत्ता के दबाव में झुक गए। उनकी लेखनी ने साहित्य के आत्मगौरव और प्रतिष्ठा की रक्षा की।
उनकी निर्भीक आवाज ने भारतीय बौद्धिक मंच को नई ऊर्जा दी। समीक्षकों का कहना है कि इतना कठोर और सटीक सच शायद विख्यात लेखक वी.एस. नायपाल भी नहीं लिख पाए। भैरप्पा की रचनाएँ केवल साहित्यिक उपलब्धि नहीं, बल्कि वैचारिक क्रांति का घोष थीं।
अमर रहेगा संदेश
भैरप्पा का स्पष्ट संदेश था, यदि आपने सच बोलने का निर्णय लिया है तो उसकी कड़वाहट या मिठास का कोई महत्व नहीं। सत्य ही सर्वोच्च है और साहित्यकार का कर्तव्य है कि उसे निडर होकर लिखा जाए। यही उनकी लेखनी और जीवन का सार था।
आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, उनका साहित्य और संदेश हमें मार्गदर्शन देता रहेगा। राष्ट्रप्रेम और सत्यनिष्ठा से ओतप्रोत उनकी कृतियाँ आने वाली पीढ़ियों को न केवल प्रेरित करेंगी बल्कि उन्हें आत्मगौरव का बोध भी कराती रहेंगी। एस.एल. भैरप्पा केवल लेखक नहीं, बल्कि युगपुरुष थे।

