Basoda 2025: इस साल शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च 2025 के दिन रखा जाएगा। इस दिन को बासोड़ा भी कहा जाता है। इस दिन घरों में एक दिन पहले बनाए गए भोजन का भोग शीतला माता को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के सभी सदस्य इसे ग्रहण करते हैं। यह तिथि पूर्ण रूप से मां शीतला की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता देवी पार्वती का रूप है और सेहत कि देवी है। उन्हें चेचक, त्वचा रोग को ठीक करने वाली देवी भी कहा जाता है। बासोड़ा के दिन इन्ही कि पूजा कर इन्हे बासी खाने का भोग लगाया जाता है।
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Basoda 2025: इस दिन क्यों खाते है ठंडा खाना?
शीतला अष्टमी का त्योहार गर्मी की शुरुआत में मनाया जाता है। यह वो वक़्त होता है जब मौसम बदलना शुरू होता है, जिसकी वजह से बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इस दिन बासी खाना खाना अच्छा माना जाता है। ऐसा कहते है कि माता शीतला को भी बासी भोजन पसंद है और उन्हें इसी का भोग लगाया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलाते और केवल बासी खाना ही खाते हैं। मान्यता है कि इस दिन बासी भोजन खाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और चेचक जैसी बीमारियों से बचाव होता है। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों आधार है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गर्मी से त्वचा संबंधी रोग होते हैं इसलिए इस दिन बासी और ठंडी तासीर वाली चीजें खाई जाती हैं। वहीं वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार, गर्मी के मौसम में रखा हुआ भोजन जल्दी खराब हो जाता है और उसमें फफूंद उत्पन्न होने लगती है, जिसे वैज्ञानिक पेनिसिलिन कहते हैं। यह शरीर में जाने के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
शीतला माता के हाथों में क्या ?
शीतला माता के चार हाथ होते है, जिनमे एक में सूप, दूसरे में झाडू, तीसरे में नीम के पत्ते और चौथे में कलश होते हैं। सूप और झाड़ू को स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है, जिससे घर और वातावरण की शुद्धि का संदेश मिलता है। वहीं कलश में मौजूद शीतल जल शांति और ठंडक का प्रतीक है और नीम के पत्तों को प्राकृतिक एंटीबायोटिक के रूप में जाना जाता है जो संक्रमण से बचाव करता है।
घरों में माता की पूजा और गीत
हिंदू धर्म में शीतला माता को रोगनाशिनी देवी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी और गर्मी से होने वाली अन्य बीमारियों से बचाव होता है। इसीलिए शीतला अष्टमी के दिन शीतला मा्ं कि पूजा कि जाती है। इस पर्व की तैयारियां एक दिन पहले ही शुरू हो जाती हैं। इसके लिए महिलाएं विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाती हैं और अगली सुबह शीतला माता को भोग लगाकर परिवार के सभी सदस्य प्रसाद के रूप में इन्हें ग्रहण करते हैं। वहीं घरों में माता के भजन गाए जाते हैं।