पूर्व संघ प्रचारक स्वामी माधोदास और उनकी टीम के साथ रात्रि में गेस्टहाउस में किया गया पाशविक व्यवहार, कानून व्यवस्था पर उठे सवाल
स्वामी माधोदास को धोखे से फंसाकर घटना को दिया अंजाम
बाड़मेर: राजस्थान के बाड़मेर में एक सन्यासी के साथ वहशियाना व्यवहार की घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। संघ के पूर्व प्रचारक और वर्तमान में संन्यासी जीवन व्यतीत कर रहे स्वामी माधोदास अपने सामाजिक मिशन के अंतर्गत बाड़मेर पहुंचे थे। स्थानीय ‘कथित किसान नेता’ मूलाराम चौधरी, पूर्व प्रधान बाड़मेर द्वारा उन्हें आमंत्रित कर एक निजी गेस्टहाउस में ठहराया गया, लेकिन यह आतिथ्य जल्द ही गुंडागर्दी में बदल गया।
स्वामी माधोदास ने अपने सोशल मीडिया पर इस रात्रि के अनुभव को “मृत्यु से भी बदतर” बताया है। उनका कथन है कि वे और उनकी टीम जान बचाकर भागे, जबकि पूरी रात उन्हें बंधक बनाकर टॉर्चर किया गया।
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नियोजित था हमला: पहले दिन सत्कार, दूसरे दिन अत्याचार
बाड़मेर: घटनाक्रम के अनुसार, पहले दिन स्वामीजी को अच्छे भोजन, राजनीतिक-प्रभावशाली मुलाकातों और स्थानीय प्रचार के माध्यम से यह भरोसा दिलाया गया कि उन्हें आमंत्रित करने वालों के इरादे नेक हैं। लेकिन अगले ही दिन, रात्रि के अंधकार में स्थिति पूरी तरह बदल गई।
रात्रि लगभग 12 बजे के बाद, शराब पिए हुए कुछ स्थानीय लोग, जिनमें एक RAS अधिकारी, पंचायत समिति का एक प्रधान और कथित रूप से रसूखदार परिवार का उद्योगपति शामिल था, गेस्टहाउस में जबरन घुस गए। उन्होंने न केवल स्वामीजी को गालियां दीं, बल्कि शारीरिक और यौन हिंसा की कोशिश की।

साधु ही नहीं, पूरी टीम को बनाया गया शिकार, घटना का खौफनाक मंजर सुन सब हुए हैरान
बाड़मेर आगमन पर किया था स्वागत
बाड़मेर: 4 अप्रैल को सुबह 5 बजे संगरिया से रवाना होकर स्वामी माधोदास की टीम शाम तक बाड़मेर पहुँच गई। बाड़मेर में किसी उपयुक्त आश्रम की जानकारी मोबाइल पर न मिल पाने के कारण उन्होंने बाड़मेर के एक किसान नेता की व्यवस्था को स्वीकार कर लिया। जिस गेस्ट हाउस में उन्हें ठहराया गया, वहाँ उनका स्वागत हुआ, भोजन कराया गया और कमरा दिया गया जहाँ पूरी टीम एक साथ रुकी।

5 अप्रैल की रात को हुआ हमला
बाड़मेर: 5 अप्रैल की रात करीब 12 बजे, दिनभर की यात्राओं और मुलाकातों के बाद सभी लोग सो रहे थे कि देर रात अचानक कुछ लोग शराब के नशे में गेस्ट हाउस में घुस आए। एक शराबी व्यक्ति कमरे में आया और स्वामी माधोदास के बेड के पास बैठ गया। शराब की दुर्गंध से जागकर जब स्वामी माधोदास ने उससे पूछताछ की तो उसने खुद को ‘भक्त’ बताते हुए प्रणाम किया और लौट गया। गेट के बाहर कुछ और लोग बैठे हुए दिखे जिनमें एक दानदाता का सगा भाई भी था — इसे देख स्वामी माधोदास कुछ हद तक निश्चिंत हो गए।
लेकिन कुछ ही मिनट बाद वह व्यक्ति फिर से कमरे में घुसा और एक कार्यकर्ता के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। यह देखकर स्वामी माधोदास ने तत्काल सबको सामान समेटने को कहा और बाहर जाकर उस दानदाता के भाई से निवेदन किया कि वे यहाँ सुरक्षित नहीं हैं और उन्हें जाने दिया जाए। परंतु जवाब आया — “ये आदमी यहाँ आकर सोता है, आप उससे खुद निपटिए।” दानदाता का रिश्तेदार मनोहर सिंह पावड़ा बताया जा रहा है जो कि किसान भवन गेस्ट हाउस का मैनेजर है।
आधी रात में मचाया हिंसा का तांडव
बाड़मेर: उस व्यक्ति ने न केवल कार्यकर्ताओं से अभद्र सवाल किए बल्कि स्वामी जी से भी जाति और गोत्र पूछने लगा। पहले तो स्वामी माधोदास ने मना किया, पर जब उसने धमकी दी — “बता रहे हो या लंबा कर दूँ यहीं?” — तब विवश होकर उन्होंने गोत्र बताया। फिर वही व्यक्ति बोला — “इस गोत्र में तो मेरा ससुराल है, आपकी इज्जत अब डबल हो गई।”
इसके बाद जो हुआ, वह पालघर में साधुओं की हत्या के जैसा भयावह है। उस शराबी और उसके साथियों ने एक-एक करके सबको बाहर खींचा। किसी की पैंट उतरवाई गई, किसी को अंडरवियर तक हटाने को कहा गया, किसी को जबरन चूमा गया, यहाँ तक कि स्वामी माधोदास के जननांगों पर हाथ डालने की कोशिश की गई।
किसी को जूतों के पास रखकर रोटी खिलाने की कोशिश की गई, एक जैन कार्यकर्ता को जबरन मांस खिलाने की कोशिश की गई, एक सिख साधु की पगड़ी खींची और दाढ़ी में हाथ डालने का अपमानजनक प्रयास किया गया। दलित ड्राइवर को बेरहमी से पीटा गया। कुछ को ‘मुर्गा’ बनाकर बेल्ट से पीटा गया, गुप्तांगों को चोट पहुंचाई गई और शारीरिक मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ दी गईं।

खुद को RAS बता रहा था हमलावर
बाड़मेर: ये सब करते हुए वह व्यक्ति खुद को RAS अधिकारी बताता रहा। दानदाता का भाई और उनके साथी इन सारी घटनाओं पर हँसते रहे, और मौन सहमति देते रहे। इस पूरे ढाई घंटे तक स्वामी माधोदास और उनकी टीम दया की भीख माँगती रही। यह पूरी यातना रात करीब तीन बजे तक चली। जिसके बाद मौका पाकर स्वामी माधोदास और उनकी टीम जान बचाकर भागी।
टीम के मन में कई बार बदले की भावना आई, लेकिन उन्होंने यह सोचकर शान्ति रखी कि यदि स्थिति और बिगड़ गई तो जान भी जा सकती है। उन्होंने कहा, “कल के अखबारों में तो मेरे ऊपर आरोप लगा दिया जाएगा, और गुंडों की असलियत का कहीं ज़िक्र नहीं आएगा।”
स्वामी माधोदास के अनुसार हमलावरों में से एक कह रहा था कि “तुम मनोरोगियों के नाम पर ठगी करते हो, तुम्हें खदेड़ दिया जाएगा।” स्वामी माधोदास ने कहा कि यह पूरा हमला किसी गहरे षड्यंत्र और आर्थिक हित से जुड़ा है।

इस अप्रत्याशित हमले ने पूरी टीम को मानसिक रूप से तोड़ दिया, और वे दो दिन तक अपना दुखड़ा सोशल मीडिया पर अपने “भज गोविन्दम्” नाम के प्रसिद्ध हैंडल पर लिखते रहे पर प्रशासन ने सुध नहीं ली। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि पुलिस में शिकायत करे, क्योंकि हमलावर रसूखदार और सत्ता से जुड़े लोग थे। उन्होंने अपनी सोशल मीडिया वाल पर लिखा — “गीदड़ों ने मिलकर शेर का शिकार करने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुए। भय से नहीं, सत्य से बोल रहा हूँ। मैं तो मेरा पिंडदान जीते जी कर चुका, डर किस बात का? मुझे चिंता उन साथियों की थी जो मेरे साथ थे।”
स्वामी माधोदास ने कहा कि जहाँ उन्हें ठहराया गया था, उस जगह के मालिक को उनकी रक्षा करनी चाहिए थी पर उनके मदद मांगने के बावजूद मदद नहीं की गई, जबकि उनके रिश्तेदार हमले के समय मौजूद थे। ऐसे में हमले में मालिक और उसके रिश्तेदारों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता।
‘जातिवाद का जहर’: अदरकास्ट वालों को किया अपमानित
बाड़मेर: हमलावरों की क्रूरता केवल हिंसा तक सीमित नहीं रही, बल्कि जातिवादी हमला भी किया गया। स्वामी माधोदास के अनुसार, हमलावर बार-बार उनकी टीम को “अदर जाति के लोग” कहकर अपमानित करते रहे।

हमलावरों में स्थानीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, पंचायत समिति का नेता और प्रतिष्ठित रसूखदार परिवार के सदस्य शामिल थे। घटना केवल सड़कछाप गुंडों की करतूत नहीं, बल्कि इसमें प्रशासनिक, सामाजिक और राजनीतिक मिलीभगत थी। घटनास्थल पर मौजूद लोग खुद के जातिगत आधार पर खुलेआम सत्ता का दंभ दिखा रहे थे।
प्रताड़ना की सारी सीमाएं लांघी
बाड़मेर: हमलावरों ने मानवीय मर्यादाओं को शर्मसार कर दिया। स्वामी माधोदास ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखा — “हमें फ्लाईओवर पर सीरिया इराक़ की तर्ज़ पर लटका दिया होता, ज़्यादा गरिमामयी होता, हमारे अंडरवियर उतरवाने में क्या आनंद था?”

अब तक इस घटना पर स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है, जबकि हमलावरों की पहचान स्पष्ट है। ना FIR, ना पूछताछ, ना गिरफ्तारी — क्या यह सत्ताधारी वर्ग को मिले अनकहे संरक्षण का संकेत नहीं है?
कौन हैं स्वामी माधोदास? सेवा से शुरू हुई यात्रा

बाड़मेर: स्वामी माधोदास राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक रहे हैं और अभी संन्यासी जीवन जी रहे हैं। 2012 से अब तक ‘निष्काम मुक्ति अभियान’ के अंतर्गत उन्होंने संगरिया व आसपास के 8 जिलों में मानसिक रोगियों को खोजकर 300 से अधिक लोगों को बंदी अवस्था और जंजीरों से मुक्त किया। उनमें से करीब 150 रोगियों को ज़ंजीरों से मुक्ति मिली, और 115 से अधिक लोग वापस समाज की मुख्यधारा में लौट आए।
कोरोना काल से पहले ही उनकी टीम का उद्देश्य राजस्थान के पश्चिमी जिलों — विशेषकर बाड़मेर, जैसलमेर, फलौदी, पाली, सिरोही इत्यादि में सेवा कार्य को बढ़ाना था। इसी योजना पर वे काम कर रहे हैं। और इसके पीछे किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं थी, बल्कि यात्राओं और इलाज के लिए वे पूर्णतः समाज के दानदाताओं पर निर्भर हैं।
इस साल 15 से 22 मार्च के बीच उनकी पहली यात्रा नागौर, डीडवाना, जोधपुर और जालौर में सफल रही थी। इसके पश्चात 4 से 15 अप्रैल तक उनकी दूसरी यात्रा बाड़मेर सहित पश्चिमी जिलों में तय थी। बाड़मेर और जैसलमेर के लिए स्थानीय दानदाता ने उनके रुकने की व्यवस्था का आश्वासन दिया था, पर उसी स्थान पर हमला करवा दिया गया।
भड़काकर हमला करवाने वाले की शिनाख्त की की मांग

बाड़मेर: स्वामी माधोदास ने कहा है कि हमले के पीछे कोई बड़ी शक्ति है, जिसके आर्थिक हित मनोरोगियों के इलाज और पुनर्वास के कार्यक्रम से प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए सोची समझी योजना के तहत झूठ फैलाकर हमला करवाया गया है। उन्होंने कहा, “जिनको लगता है कि वे मेरी मदद करना चाहते हैं तो इतनी सी मदद कर दें मुझे उस आदमी का नाम बता दें जिसने उन गुंडों को ये कहा कि बापजी फर्जी है, और मनोरोगियों की सेवा के नाम पर बाड़मेर पैसा बनाने आए हैं, बाड़मेर में आख़िर वो कौन व्यक्ति है जिसके आर्थिक हित मनोरोगियों के ज़ंजीर मुक्त हो जाने पर प्रभावित होने वाले थे।
हमला करते समय हमलावर साधु माधोदास के एनजीओ पर मानसिक रोगियों के नाम पर पैसा कमाने का आरोप लगा रहे थे। जबकि अभी तक स्वामी माधोदास के एनजीओ को कोई सरकारी सहायता नहीं मिल रही है और ये कार्यक्रम स्वयंसेवा के माध्यम से चल रहा है। फिर ऐसा वहशी हमला करने का क्या उद्देश्य हो सकता है यह स्पष्ट नहीं है।
प्रदेश में साधु असुरक्षित: कानून राज पर प्रश्नचिह्न
बाड़मेर: भाजपा शासित में संतों के खिलाफ ऐसी घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं: जब राज्य में संघ के पूर्व प्रचारक और प्रतिष्ठित संन्यासी की अस्मिता ही सुरक्षित नहीं है, तो आम जन की सुरक्षा का क्या होगा?
इस मामले में प्रशासन और राजनीति से जुड़ी बड़ी मछलियों के शामिल होने की बात कही जा रही है, हाल ही में मेडिकल क्षेत्र से जुड़े राजस्थान गवर्नमेंट हैल्थस्कीम में रोज रोज नए नए घोटाले उजागर हो रहे हैं। ऐसे में मनोरोगियों के स्वास्थ्य और पुनर्वास से जुड़े साधु पर हमला गहरे नेक्सस की ओर इशारा कर रहा है।