Balochistan: आज हम बात करेंगे पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्से में स्थित बलूचिस्तान की – एक ऐसे क्षेत्र की जहां आज़ादी की चिंगारी सालों से सुलग रही है। वहां से आज एक ही आवाज़ गूंज रही है”हमारी लड़ाई पाकिस्तान से मुक्ति के लिए है, जिसने हमारे क्षेत्र पर आतंकवाद का कैंसर थोप दिया है।”
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Balochistan: 9 हजार साल पुराना इतिहास
बलूचिस्तान का इतिहास 9,000 साल पुराना है। यह प्राचीन मकरान और गांधार सभ्यता का हिस्सा था। यह ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण इलाका था, जहां से होकर सिकंदर भी भारत आया था। सदियों से बलूच लोगों का अपना समृद्ध इतिहास और संस्कृति रही है।
खान ऑफ कलात का शासन
आज़ादी से पहले बलूचिस्तान में ब्रिटिश साम्राज्य और खान ऑफ कलात का शासन था। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय, खान ऑफ कलात मीर अहमद यार खान ने बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया था। उन्होंने 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान की आज़ादी का ऐलान किया, जो पाकिस्तान की आज़ादी से तीन दिन पहले था।
जबरन कब्जा
बलूच की यह आज़ादी ज़्यादा दिन नहीं चली। पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को अपनी सेना भेजकर बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर लिया। खान ऑफ कलात को मजबूरन पाकिस्तान के साथ विलय के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने पड़े। और तभी से शुरू हुआ बलूचिस्तान का आज़ादी का संघर्ष।
पांच बड़े विद्रोह
बलूचिस्तान में अब तक पांच बड़े विद्रोह हुए हैं। पहला 1948 में, जब पाकिस्तान ने कब्ज़ा किया। दूसरा 1958 में, तीसरा 1963 में, चौथा 1973 में जिसे बड़ी बेरहमी से कुचल दिया गया। और अब 2004 से बलूचिस्तान मुक्ति का आंदोलन चल रहा है, जो पिछले 20 सालों से जारी है।
गरीबी में जी रहें बलूची
वर्तमान में बलूच लिबरेशन आर्मी, बलूच लिबरेशन फ्रंट और बलूच रिपब्लिकन आर्मी जैसे संगठन इस आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं। इनका लक्ष्य एक स्वतंत्र बलूचिस्तान की स्थापना है। आखिर इतना बड़ा आंदोलन क्यों चल रहा है? क्योंकि बलूचिस्तान प्राकृतिक संपदा से भरपूर होने के बावजूद वहां के लोग गरीबी में जी रहे हैं।
खनिजों का भंडार
बलूचिस्तान में पाकिस्तान का 40% गैस भंडार, सोना, तांबा, कोयला और अन्य कीमती खनिज हैं। लेकिन इन संसाधनों का लाभ पाकिस्तान के अन्य प्रांतों को मिल रहा है, जबकि बलूच लोग दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं।
वहां न अस्पताल हैं, न स्कूल, न ही बुनियादी सुविधाएं। बलूचिस्तान में साक्षरता दर महज 40% है और हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। पाकिस्तान के अन्य प्रांतों की तुलना में यहां विकास दर सबसे कम है।
हजारों लोग लापता
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, पिछले बीस सालों में हज़ारों बलूच लोग लापता हो चुके हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI पर छात्रों, लेखकों और कार्यकर्ताओं को अगवा करने और फर्जी मुठभेड़ों में मारने के गंभीर आरोप हैं। कई बार इलाके में सामूहिक कब्रें भी मिली हैं।
भारत को धन्यवाद
2016 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बलूचिस्तान का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि बलूचिस्तान के लोग भारत को धन्यवाद दे रहे हैं।
यह एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक संकेत था कि भारत अब इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठाएगा। इसके बाद से बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय चर्चा मिलने लगी।
बाद में भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया और बलूच आंदोलनकारियों में नई उम्मीद जगाई। बौखलाए पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान में छापेमारी और गिरफ्तारियां शुरू कर दीं, लेकिन बलूच सेनानी भी मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं।
चीन के निवेश से बलूच के बंदरगाह का विकास
आज बलूच विद्रोही पाकिस्तानी सेना और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर हमले कर रहे हैं। उनका मानना है कि CPEC उनकी ज़मीन पर विदेशी कब्जे को और मज़बूत कर रहा है।
चीन के निवेश से बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का विकास हो रहा है, लेकिन स्थानीय बलूच लोगों को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा। उल्टे उन्हें अपनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है।
पाकिस्तान के लिए ‘दो मोर्चों की लड़ाई’
भारत के लिए यह रणनीतिक फायदे की स्थिति है क्योंकि इससे पाकिस्तानी सेना को अपनी पश्चिमी सीमा पर व्यस्त रहना पड़ता है, जिससे वह कश्मीर या पंजाब पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती। यह पाकिस्तान के लिए ‘दो मोर्चों की लड़ाई’ बन गई है।
पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद को अपने विदेश नीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल करता आया है, लेकिन अब वह खुद इसका शिकार हो रहा है।
बलूचिस्तान सिर्फ पाकिस्तान का एक उपेक्षित प्रांत नहीं, बल्कि मानवता के लिए खतरा बनते पाकिस्तान की असली तस्वीर दिखाता जीता-जागता उदाहरण है। पाकिस्तान के अन्याय, सैन्य दमन और संसाधनों की लूट ने वहां के लोगों में विद्रोह की आग जला दी है।
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