Artificial Intelligence: आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की मदद से बड़ी से बड़ी समस्याओं को चुटकियों में हल किया जा सकता है। निबंध लिखने से लेकर बिजनेस रणनीति तक और मार्केटिंग से लेकर रिसर्च तक हर काम में AI अब एक भरोसेमंद साथी बन चुका है।
लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या इस आसान मदद की कीमत हम अपने दिमाग़ की क्षमता खोकर चुका रहे हैं?
MIT के एक हालिया अध्ययन में यह सामने आया कि जो छात्र लेखन के लिए AI टूल्स जैसे ChatGPT का इस्तेमाल करते हैं, उनके मस्तिष्क के वे हिस्से जो रचनात्मकता और एकाग्रता से जुड़े हैं, कम सक्रिय पाए गए।
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Artificial Intelligence: AI का इस्तेमाल दिमाग को कर रहा कमजोर
EEG मशीनों से दिमाग़ की गतिविधि को मापा गया और नतीजे चौंकाने वाले थे। AI से मदद लेने वाले छात्र न केवल कम रचनात्मक थे, बल्कि वे अपने खुद के लिखे निबंध की जानकारी को भी याद नहीं रख पाए। यानी AI का इस्तेमाल उनकी याददाश्त और समझदारी पर भी असर डाल रहा था।
सोचने की क्षमता पर डाल रहा असर
Microsoft Research के एक और अध्ययन में यह बात सामने आई कि जो लोग नियमित रूप से जनरेटिव AI का उपयोग करते हैं, उनमें से ज़्यादातर लोग आसान और ऑटोमैटिक मोड वाले कामों के लिए AI की मदद लेते हैं, लेकिन जिन कार्यों में गंभीर सोच की ज़रूरत थी।
उनमें उनकी सहभागिता कम थी। इसका मतलब साफ है AI हमारी सोचने की क्षमता को चुनौती नहीं दे रहा, बल्कि उसे सुस्त बना रहा है।
सोचने की आदत धीरे-धीरे कम हो रही
स्विट्ज़रलैंड के एक बिज़नेस स्कूल के प्रोफेसर माइकल गर्लिक के मुताबिक, जो लोग AI पर ज़्यादा भरोसा करते हैं, उनकी “क्रिटिकल थिंकिंग” यानी गहराई से सोचने की आदत धीरे-धीरे कम हो रही है।
उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में 666 लोगों पर किए गए एक सर्वे में यह पाया गया कि AI पर अधिक निर्भरता ने लोगों को सतही सोचने वाला बना दिया है। कई शिक्षकों ने भी शिकायत की कि उनके छात्र अब गहराई से विचार नहीं करते, बस AI के भरोसे रहते हैं।
AI को एक टूल की तरह इस्तेमाल करें
इस मानसिक सुस्ती को वैज्ञानिक “Cognitive Offloading” कहते हैं यानी जब दिमाग कठिन कार्यों से बचने के लिए जिम्मेदारी किसी और पर डाल देता है, और धीरे-धीरे आलसी बन जाता है, टोरंटो यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में भी पाया गया कि AI से प्रेरित रचनात्मक विचार अक्सर सामान्य और सीमित होते हैं।
जब प्रतिभागियों से पूछा गया कि पुरानी जींस का क्या नया उपयोग हो सकता है, तो AI ने सुझाव दिया, उसे बिजूका बना दिया जाए। वहीं एक प्रतिभागी ने बिना AI के सुझाव देते हुए कहा जेब में मेवे भरकर इसे पक्षियों के लिए फीडर बनाया जाए। यह सुझाव कहीं ज़्यादा मौलिक और कल्पनाशील था।
तो क्या AI से पूरी तरह दूरी बना ली जाए? विशेषज्ञ कहते हैं नहीं, बल्कि उसका संतुलित उपयोग करना ज़रूरी है। AI को एक टूल की तरह इस्तेमाल करें, फैसला लेने वाली मशीन की तरह नहीं। उसे अपने सोचने की प्रक्रिया का मार्गदर्शक बनाएं, न कि अंतिम जवाब देने वाला जज।
Microsoft की एक टीम ऐसे AI सिस्टम पर काम कर रही है जो यूज़र को सोचने के लिए प्रेरित करें, उन्हें सवालों में उलझाएं, ताकि उनका दिमाग सक्रिय बना रहे। कुछ यूनिवर्सिटीज़ भी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं जिनमें AI जवाब नहीं देता, बल्कि सवाल पूछता है ताकि इंसान खुद सोचकर समाधान निकाल सके।