Friday, April 18, 2025

अखिलेश यादव की ‘गौ घृणा’ राजनीति: क्या ये कट्टरपंथियों के लिए सिग्नलिंग है?

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर ‘गाय’ के बहाने हिंदू समाज की भावनाओं पर चोट करने की कोशिश की जा रही है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का हालिया बयान— “गाय और गौशालाओं से दुर्गंध आती है”— एक गहरा सांस्कृतिक और राजनीतिक संकेत है। यह संकेत उस वर्ग के लिए है जो जानता है कि ‘गौमाता’ इस देश के बहुसंख्यक समाज की आत्मा हैं, इसलिए जानबूझकर गाय पर प्रहार करता है।

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क्या अखिलेश यादव बार बार गायों के खिलाफ घृणित बयानबाजी करके अपने वोटबैंक को ये सिग्नल दे रहे हैं कि हमारी सरकार आने पर गौहत्या पर हालात पहले जैसे हो जाएँगे? अखिलेश यादव का यह कथन इसलिए और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि यह उस प्रदेश के संदर्भ में है जहाँ योगी आदित्यनाथ के शासन में गौहत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध है—कानून से लेकर ज़मीन तक।

गौघृणा की राजनीति से बाज नहीं आ रहे अखिलेश यादव

गौशाला से दुर्गन्ध आती है पर ही अखिलेश यादव नहीं रुके, DU में दीवारों पर गोबर लीपने की प्राचीन परंपरा अपनाने के खिलाफ फिर एक बार ट्विटर पर घृणा से भरा ट्वीट कर दिया। अखिलेश यादव ने लिखा, “वैज्ञानिक सोच के ऊपर रूढ़िवादी लोग अपनी नकारात्मक सोच का गोबर न तो लीपें, न थोपें।” क्या अखिलेश यादव के गाँव में घर गोबर से नहीं लीपे जाते?

भारत का कौनसा ऐसा गाँव है जहाँ प्राचीन काल से घर की दीवारें और फर्श गोबर से नहीं लीपा जाता? हिन्दू पर्व त्यौहारों, हवन , पूजा में भी जमीन को पूजा के लिए शुद्ध बनाने के लिए गोबर से लीपना पड़ता है।

यह सारे बयान राजनीतिक सिग्नलिंग है

जब एक ऐसा नेता, जो खुद को ‘श्रीकृष्ण का वंशज’ कहता है, गाय को दुर्गंध का स्रोत बताने लगे, तो यह भूल नहीं मानी जा सकती। यह सीधा संदेश है—कि अगर हम आए, तो गौशालाओं की जगह कुछ और स्थापित होगा।

राजनीतिक विश्लेषक इस बयान को केवल गौसेवा पर टिप्पणी नहीं मान रहे, बल्कि इसे मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए सिग्नलिंग कह रहे हैं। यह उन वर्गों को परोक्ष रूप से यह बताने की कोशिश है कि अभी योगी राज में जो कुछ ‘बंद’ है, वह सत्ता बदलते ही ‘फिर से खुल’ सकता है।

योगी राज: गौहत्या के खिलाफ सख्त एक्शन

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 2017 में सत्ता में आने के तुरंत बाद गौकशी पर पूर्ण प्रतिबंध को न सिर्फ सख्ती से लागू किया, बल्कि उसके लिए विशेष ‘गौ रक्षा बल’ और निगरानी समितियाँ गठित कीं। अवैध स्लॉटर हाउस धड़ल्ले से बंद हुए। गोकशी और गौतस्करी में लिप्त लोगों पर NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत कार्रवाई हुई। हजारों गौवंश को छुड़ाकर शरण और चिकित्सा दी गई।

इसकी तुलना में अखिलेश यादव का कार्यकाल (2012-17) एक भिन्न परिदृश्य प्रस्तुत करता है। उन वर्षों में अवैध गौकशी, गौ-तस्करी और स्लॉटर हाउसों की भरमार थी। यदुवंशी होने के बावजूद अखिलेश यादव न तो कभी गौसेवा से जुड़े दिखे, न ही उन्होंने गौहत्या पर कोई विशेष प्रतिबंधात्मक रुख दिखाया। बल्कि अनेक जिलों में स्थानीय प्रशासन की शह से गौकशी के केंद्र फलते-फूलते रहे।

अखिलेश यादव गौमाता गोबर गौ घृणा akhilesh yadav khan

गाय: हिंदू पहचान पर सबसे सस्ता हमला

गाय हिंदू समाज को जमीनी स्तर पर जोड़ती है। किसी साधारण ग्रामीण से लेकर बड़े से बड़े संतों तक—गाय का सम्मान हर हिन्दू करता है। लेकिन यही गाय अब राजनीतिक तुष्टिकरण का सबसे ‘सॉफ्ट टारगेट’ बन चुकी है। गाय न जवाब दे सकती है, न खुद को बचा सकती है, इसलिए उस पर कटाक्ष करना, हिंदू समाज की भावनाओं को आहत करने का एक आसान जरिया बन गया है।

रवीश कुमार जब बार-बार ‘गोबर’ के संदर्भ में भाजपा पर तंज कसते हैं, तो वे भी परोक्ष रूप से उसी विमर्श को हवा देते हैं, जिससे मुस्लिम वर्ग में यह संदेश जाए—”देखो, हम उनके पूज्य प्रतीकों का मजाक भी उड़ा सकते हैं।” अखिलेश यादव भी वही कर रहे हैं।

क्या बिना गाय खाए कोई जी नहीं सकता?

क्या बिना गौमांस खाए जीवन संभव नहीं? जवाब है—बिल्कुल संभव है। देश में मांसाहारी लोग कई तरह का मांस खाते हैं, लेकिन वहाँ हिंदू समाज कभी आपत्ति नहीं जताता क्योंकि वह ‘सांस्कृतिक सहजता’ के तहत होता है, न कि किसी को चिढ़ाने या अपमानित करने के उद्देश्य से।

लेकिन जब समाज गोपालन और गौपूजा की परंपरा में पला-बढ़ा है, वहाँ गौमांस खाने की ज़िद केवल संस्कृति विरोध नहीं, बल्कि आतंक की सियासत का प्रतीक बन जाती है।

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“गोबर से दुर्गंध आए तो समझो समाज से कट चुके हो” – केशव मौर्य

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव के बयान पर करारा प्रहार करते हुए कहा:
“किसान, ख़ासकर ग्वाल के बेटे को अगर गाय के गोबर से दुर्गंध आने लगे तो समझना चाहिए कि वह अपनी जड़ों और समाज से पूरी तरह कट चुका है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने लिखा था कि किसान के बेटे को अगर गोबर से दुर्गंध आने लगे तो अकाल तय है।”

उन्होंने आगे कहा कि अगर समाजवादी पार्टी के नेता को गोबर से घिन आने लगी है, तो पार्टी का ‘समाप्तवादी’ में तब्दील होना तय है।

मोहन यादव ने दिया करारा जवाब

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 12 अप्रैल को अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में गोपालन से जुड़े परिवार से आने वाला एक व्यक्ति केवल वोट के चक्कर में कह रहा है कि उसे इत्र की खुशबू आती है और गोशाला में बदबू आती है। मुझे दुर्भाग्य के साथ कहना पड़ेगा कि भारत में रहकर गोशाला में जिसको बदबू आए, उसको भारत में रहने का अधिकार नहीं है।’’ 

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गोबर से बन रहीं आयुर्वेदिक औषधियां

इस मौके पर सीएम मोहन यादव ने कहा कि गाय के गोबर से आयुर्वेदिक औषधियां भी बन रही हैं। इसके अलावा यह कैंसर को भी मात दे सकता है। वहीं उन्होंने कहा कि इन दिनों कई परिवारों के लोग अपने बच्चों के जन्मदिन मनाने के लिए गौशालाओं में आ रहे हैं। इसके लिए गोशाला से अच्छा स्थान कौन सा हो सकता है। सीएम ने कहा कि गाय का गोबर जीवन रूपी अमृत है जिससे बनी खाद से गेहूं के चंद बीजों से हजारों बालियां फूट पड़ती हैं। 

तीखी प्रतिक्रियाएं

  • डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा, “गौशाला में सुगंध नहीं, सनातन की आस्था को ढूंढो। जो लोग गाय की पूजा नहीं करते, उन्हें कम-से-कम अपमान तो नहीं करना चाहिए।”
  • सुब्रत पाठक ने कहा कि अखिलेश यादवको सबसे ज्यादा दुख इस बात से है कि अब गौकशी के केंद्र बंद हो गए हैं। योगी शासन में जिस प्रकार स्लॉटर हाउस बंद हुए, वह कट्टरपंथियों के लिए सबसे बड़ा झटका था।
  • संघ के लखनऊ संयोजक शरद ने अखिलेश यादवको याद दिलाया कि “यदुवंश आज भी दूध-दही के व्यापार से जुड़ा है। गोबर से मूर्तियाँ, दीपक और औषधियाँ बनती हैं। दुर्गंध की बात करने वाले अपनी संस्कृति से कट चुके हैं।”
  • राकेश त्रिपाठी, भाजपा प्रवक्ता ने तीखा व्यंग्य करते हुए कहा, “अखिलेश यादव को स्लॉटर हाउस से खुशबू आती है, लेकिन गौशाला से दुर्गंध।”

अखिलेश यादव ने दिया कट्टरपंथियों को सिग्नल

गाय भारत के सांस्कृतिक चैतन्य की जीवंत प्रतिमा है। उस पर टिप्पणी पूरे हिन्दू धर्म पर प्रहार है। यह कहना कि ‘गौशालाएं दुर्गंध देती हैं’—वास्तव में हिंदू आस्था, ग्राम्य जीवन और आध्यात्मिक परंपरा का अपमान है।

अखिलेश यादव का यह बयान उनके वैचारिक विचलन का प्रमाण है, कट्टरपंथियों के लिए एक परोक्ष आमंत्रण भी है—“हमारे राज में वो सब फिर से हो सकेगा, जो अभी प्रतिबंधित है।”

हिंदू समाज को यह समझना होगा कि गाय पर हमले अब सीधे नहीं, सांकेतिक तरीके से हो रहे हैं—’कान घुमा कर पकड़ने’ जैसी रणनीति में। और यही समय है इन संकेतों को पढ़ने, समझने और याद रखने का।

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