AI: कभी सोचा है कि जिस नौकरी को करने में आपने सालों लगाए, वह एक दिन अचानक एक मशीन को मिल जाए? आज यही सच बनता जा रहा है। AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब भविष्य की बात नहीं रही, यह हमारे आज का हिस्सा बन चुका है।
पहले लोग सोचते थे कि रोबोट बस फिल्मों में होते हैं, लेकिन अब वे हमारे दफ्तरों में, फैक्ट्रियों में और मोबाइल ऐप्स के ज़रिए हमारे काम कर रहे हैं।
AI: इंसान को हटाकर मशीनों से करा रही काम
AI के आने से सबसे बड़ा असर हमारी नौकरियों पर पड़ रहा है। कई कंपनियां अब इंसान को हटाकर मशीनों से काम करवा रही हैं। धीरे-धीरे ऐसे लाखों लोग बेरोजगार हो सकते हैं जिन्हें इस बदलाव का अंदाज़ा तक नहीं है।
सोचिए आप रोज मेहनत कर रहे हों और एक दिन पता चले कि आपकी कुर्सी अब एक मशीन को दे दी गई है। बिना किसी चेतावनी के, चुपचाप आपकी जगह कोई सिस्टम ले चुका हो।
62 रुपये से कम में कर रहें गुजारा
आज भी भारत में 7 करोड़ से ज़्यादा लोग रोज़ 62 रुपये से कम में गुज़ारा करते हैं। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक ऐसी हकीकत है जो चुपचाप करोड़ों सपनों को तोड़ रही है।
इतनी बड़ी आबादी आज भी दो वक़्त की रोटी के लिए जूझ रही है और ऐसे में जब मशीनें इंसानों की जगह लेने लगें, तो सबसे पहले यही गरीब तबका इसकी चपेट में आएगा।
गरीबी में जीने को मजबूर
भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, लेकिन ये विकास क्या सब तक पहुंच पा रहा है? अगर GDP बढ़ भी रही है, तो इसका फायदा सिर्फ बड़े उद्योगपतियों और शहरों में रहने वाले कुछ लोगों को ही क्यों मिल रहा है?
गांवों, कस्बों और झुग्गियों में रहने वाले लोग अब भी उसी ज़िंदगी को जीने को मजबूर हैं, जिसमें न शिक्षा है, न रोज़गार और न ही भविष्य की कोई उम्मीद।
लोकतंत्र की दिशा कहां जा रही है?
हर चुनाव में कहा जाता है कि ये आम जनता की सरकार है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? आज भी ज़्यादातर ताक़तवर पदों पर वही लोग बैठे हैं जिनके पास पैसे, रिश्ते या राजनीतिक नाम है।
आम आदमी की आवाज़ दबा दी जाती है और अब जब AI जैसी तकनीकें आ रही हैं, तो उसका डर और गहरा हो गया है।
अगर समय रहते सरकारें नहीं जागीं, तो एक दिन यह टेक्नोलॉजी लाखों लोगों से उनकी पहचान, उनका रोजगार और उनका आत्मसम्मान छीन लेगी और तब सवाल सिर्फ नौकरी का नहीं, इंसान होने के हक़ का होगा।
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