Thursday, September 19, 2024

Janmashtami 2024: कृष्ण और सुदामा की दोस्ती से सीखें ये 5 बातें

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Janmashtami 2024: इस बार कृष्ण जन्माष्टमी 26 को मनाया जाएगा। भगवान का कृष्ण का जीवन सीख पर आधारित है। उन्होंने पुत्र, प्रेमी, मित्र, राजा न जानें कितनी लीलाएं सीख जरूर देती है। वहीं कृष्ण के एक सखा थे सुदामा। जिनका जिक्र हम किसी न किसी रूप में सुनते है। सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण थे जबकि कृष्ण द्वारका के राजा, पर दोनों की मित्रता की मिसाल आज तक दी जाती है।

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सुदामा और कृष्ण की दोस्ती भारतीय संस्कृति में सच्ची मित्रता की मिशाल मानी जाती है। उनकी दोस्ती न केवल आदर्श थी बल्कि उनमें कुछ ऐसे गुण भी थे। जिनकी मित्रता का आज भी गुणगान किया जाता है। ऐसे ही हम आपको बताने जा दोनों लोगों के पांच ऐसे गुण जो आपके जीवन को सफल बना देंगे।

Janmashtami: निस्वार्थ मित्रता

श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती में कोई स्वार्थ नहीं था। वे बचपन के मित्र थे। सुदामा गरीब थे लेकिन उन्होंने कृष्ण से किसी प्रकार की सहायता की अपेक्षा नहीं की। श्रीकृष्ण ने भी कभी अपनी अमीरी का घमंड नहीं किया। उनकी दोस्ती ये सिखाती है कि मित्रता में लालच नहीं होना चाहिए। बिना किसी स्वार्थ के दोस्ती का रिश्ता सच्चा होता है।

Janmashtami: विश्वास

सुदामा ने भगवान कृष्ण पर अटूट विश्वास रखा। उन्होंने अपने मित्र से गरीबी के संघर्ष साझा करने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। कृष्ण ने भी सुदामा पर विश्वास जताते हुए उनकी मदद के लिए तत्परता दिखाई। उनकी मित्रता हमें सिखाती है कि दोस्ती भरोसे पर टिका रिश्ता है। दोस्तों के बीच विश्वास होना चाहिए, इससे कोई भी कठिनाई उनके रिश्ते को कमजोर नहीं कर सकती है।

मित्रता की मिशाल

सुदामा जब भगवान कृष्ण से मिलने द्वारिका गए तो उनका स्वागत उसी प्रेम औऱ सम्मान के साथ किया गया। जैसे अन्य मित्रों का किया जाता है। दोस्ती में अमीरी गरीबी का कोई महत्व नहीं होता है। दो दोस्त एक दूसरे के लिए हमेशा सामान होते है।

एक-दूजे के लिए समर्पण

सुदामा जब अपने मित्र कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका गए तो उनके पैरों में छाले पड़ गए थे। जब कृष्ण ने देखा तो उन्हें भी तकलीफ महसूस हुई। फिर उन्होंने सुदामा के पैरों को धोया और उस पर मरहम लगाया।

मित्र की खुशियों में अपनी खुशियां ढूढंना

सुदामा और कृष्ण एक दूसरे के सुख-दुख को अपना समझते थे। सुदामा अपने बचपन के मित्र कृष्ण को द्वारका के राजा के रूप में देखकर खुश थे तो वहीं कृष्ण ने सुदामा द्वारा गए चावल पाकर खुश थे। दोनों एक दूसरे की खुशी में खुश होना जानते थे।

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