लोकसभा चुनाव आने के बाद से ही एनडीए के सहयोगी दल खासकर की जेडीयू ने मोदी सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। नितीश कुमार ने अपनी इस पॉलिटिक्स के तहत सरकार बनने से पहले ही बीजेपी के आगे अपनी डिमांड रख दी है। सूत्रों के अनुसार, नीतीश कुमार चाहते है की अग्निवीर पर एक बार फिर, नए तरीके से सोचा जाए। इसके साथ ही पार्टी का मानना है कि UCC एक पेचीदा विषय है, लिहाजा सभी लोगों से इस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। हालांकि एक देश-एक चुनाव पर जेडीयू अपनी सहमति दे चुका है।
दरअसल, यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सभी राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी राय है। कोई चाहता है देश में लागू किया जाना चाहिए, जबकि कई दल इसके पक्ष में नहीं है। अग्निवीर योजना को लेकर भी कुछ ऐसा ही हाल है। ज्यादातर राजनीतिक दल इसके पक्ष में नहीं हैं।
नितीश और नायडू चाहते हैं बड़े मंत्रालय
इसके अलावा नितीश ने कई और मांगे भी बीजेपी के सामने रख दी है। सूत्रों के अनुसार ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है की जदयू और टीडीपी की नजर खासकर उन मंत्रालयों पर है, जिसे भाजपा देने के मूड में नजर नहीं आ रही है। दोनों पार्टियां चाहती हैं कि उन्हें गृह, रक्षा, वित्त, विदेश, राजमार्ग, वाणिज्य, रेलवे, कृषि, पेट्रोलियम आदि जैसे बड़े मंत्रालय मिले। मगर भाजपा इन टॉप 5 मंत्रालय देने के पक्ष में नहीं है।
आज यानि 7 जून को एनडीए की बैठक हो रही है जिसमे यह तय किया जायेगा कि कौन से दाल को कौन सा मंत्रालय देना हैं। हालांकि, इस बार यह फैसला लेने के लिए भाजपा की उतनी नहीं चलेगी. क्योंकि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में दोनों ही पार्टी जेडीयू और टीडीपी बड़े मंत्रालो पर खुद का कब्ज़ा चाहती हैं। उनका कहने हैं कि पहले की गठबंधन सरकारों में भी ऐसे अहम मंत्रालय सहयोगी दलों को दिए हैं।
भाजपा ने भी रखी बड़ी शर्त
सूत्रों ने बताया कि इस पॉलिटिक्स को देखते हुए भाजपा ने भी इन्हे मैंने के लिए कुछ शर्ते रख दी हैं। भाजपा का कहना हैं कि वो नितीश और चंद्रबाबू नायडू कि मांग मन लेंगे लेकिन सिर्फ तब जब वो दोनों खुद इन मंत्रालयों की जिम्मेदारी लेंगे। ऐसा करने के लिए नीतीश को मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा और चंद्रबाबू नायडू को भी सीएम पद की शपथ लेने से इंकार करना होगा।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा हैं कि बीजेपी यह टॉप मंत्रालय जदयू और टीडीपी के अन्य सांसदों को देने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने दूसरे कार्यकाल में रेलवे, सड़क परिवहन आदि में बड़े सुधार किए थे, और अब यह इन मंत्रालो को सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहते। हालाँकि संभव हैं कि इन्हें बोनो सहयोगी पार्टियों कि कुछ शर्तों पर समझौता करना पड़े।