Iran: 24 जून को ईरान और इजरायल के बीच संघर्षविराम की घोषणा के साथ ही दोनों देशों के बीच जारी भीषण युद्ध समाप्त हो गया। युद्ध के थमते ही ईरान की राजधानी तेहरान समेत कई शहरों में आम नागरिकों ने सड़कों पर उतरकर जश्न मनाया।
लोगों ने देश की जीत को लेकर जोशीले नारे लगाए, आतिशबाज़ी की और एक नई उम्मीद के साथ बाहर निकले, लेकिन यह राहत और उत्साह ज्यादा देर नहीं टिक पाया।
जैसे ही युद्ध की गूंज थमी, वैसे ही ईरान की तानाशाही सत्ता ने अपना पुराना और कठोर चेहरा फिर से दिखाना शुरू कर दिया।
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Iran: बिजली और पानी की किल्लत
तेहरान समेत देश के कई हिस्से अब बदहाल स्थिति से जूझ रहे हैं। युद्ध ने पहले से संकटग्रस्त बुनियादी ढांचे को और चरमरा दिया है। कई इलाकों में बिजली और पानी की भारी किल्लत है।
लोग सरकारी टैंकों और नलों से पानी भरने के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े हो रहे हैं। युद्ध के डर से पलायन कर चुके लोग अब धीरे-धीरे अपने घर लौटने लगे हैं, मगर उनका सामना टूटे-फूटे घरों, बर्बाद बाजारों और एक भयभीत माहौल से हो रहा है।
बाजार तो खुलने लगे हैं, लेकिन उनमें पहले जैसी रौनक नहीं है। हर तरफ सुरक्षा बलों की मौजूदगी और कड़ी निगरानी ने आम जनजीवन को जकड़ लिया है।
महिलाएं पर डंडे बरसा रही पुलिस
इस बीच, ईरान की कुख्यात मॉरल पुलिस, जिसे बसीज के नाम से जाना जाता है, फिर से सक्रिय हो गई है। इनकी गश्त अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। खासकर महिलाओं के खिलाफ सख्ती में जबरदस्त इज़ाफा हुआ है।
जो महिलाएं हिजाब नहीं पहनतीं या सिर नहीं ढकतीं, उन्हें सरेआम रोका जा रहा है, उनसे दुर्व्यवहार हो रहा है और कई मामलों में मारपीट तक की गई है। एक तरफ युद्ध की समाप्ति का जश्न था, तो दूसरी ओर समाज पर फिर से पुरानी पाबंदियों की जंजीरें कस दी गई हैं।
कुर्द इलाकों में कार्रवाई तेज
सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने इस युद्ध को अमेरिका और उसके सहयोगियों के मुंह पर तमाचा बताया है, लेकिन इसी बयानबाज़ी के साथ देश के भीतर विरोधी आवाज़ों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई तेज़ हो गई है।
खासकर कुर्द इलाकों और बहाई समुदाय के खिलाफ दमनात्मक कदम उठाए गए हैं।
शिराज और अस्फाहन जैसे शहरों में बहाई धर्म मानने वालों के घरों पर छापेमारी की गई है, कई गिरफ्तारियां की गईं और अब तक छह लोगों को फांसी दी जा चुकी है।
ऐसा प्रतीत होता है कि ईरान सरकार ने युद्ध से मिली “विजय” को अपने अंदरूनी एजेंडे को और मजबूती से लागू करने का मौका बना लिया है। जहां एक ओर देश युद्ध के बाद की तबाही से उबरने की कोशिश कर रहा है,
वहीं दूसरी ओर सरकार ने अपनी पकड़ और भी कस दी है। लोकतंत्र और स्वतंत्रता की उम्मीद फिलहाल दूर होती नज़र आ रही है।