“सम्मान नहीं, दिखावा था यह समारोह” मीसाबंदी संत भगवती प्रसाद अवस्थी ने बीजेपी के आपातकाल विरोधी आयोजन पर उठाए सवाल
इंदौर में बुधवार को भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित “मीसाबंदी सम्मान समारोह” में जो कुछ भी घटित हुआ, वह सतही रूप से भले ही उत्सव जैसा प्रतीत हुआ हो, परंतु मीसाबंदी, संत भगवती प्रसाद अवस्थी के अनुसार यह आयोजन असल में “सम्मान की आड़ में उपेक्षा और राजनीतिक चमचागिरी का प्रदर्शन था।”
अपने आत्म-सम्मान और भगवा वस्त्र की गरिमा को लेकर गहराई से व्यथित मीसाबंदी अवस्थी ने इस आयोजन में जो अनुभव किया, वह कार्यक्रम से मीसाबंदियों की नाराजगी जाहिर करता है।
“सम्मान समारोह में बुलाया गया, लेकिन जैसे एहसान किया हो”

भगवती प्रसाद अवस्थी ने बताया कि उन्हें इस आयोजन के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन जिस व्यक्ति को उन्हें बुलाने की जिम्मेदारी दी गई थी, उसने मात्र एक मिस कॉल करके सूचना दी, न कोई पुष्ट आमंत्रण, न आने-जाने की व्यवस्था।
“जिस आयोजन में हमें सम्मानित करना था, वहां हमें ही अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए खुद व्यवस्था करनी पड़ी। मैं 70 वर्ष से ऊपर का हूं, फिर भी मुझे खुद ओला बुक करके वहां जाना पड़ा।”
जब अवस्थी कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, तो उन्हें अग्रिम पंक्ति में सोफे पर बिठाया गया, लेकिन मंच पर वे लोग विराजमान थे जो कभी उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया करते थे।
“मैं मंच पर नहीं था। मंच पर वे सब लोग थे जो कभी मुझे प्रणाम करते थे। मीसाबंदियों को पीछे बिठाया, नेताओं को मंच पर विराजमान किया”
अवस्थी के अनुसार मीसाबंदियों को जिस सेक्टर में बिठाया गया था, वह वीआईपी सेक्टर के पीछे था, यानी जिनके नाम पर पूरा आयोजन हुआ, वे लोग ही सबसे दूर बिठा दिए गए।
“सम्मान देने का दावा करने वाली पार्टी ने हमें शोपीस बनाकर बिठा दिया। और मंच पर वे लोग थे, जिनका आपातकाल से कोई सीधा संबंध तक नहीं रहा।”
अवस्थी जी के अनुसार भाजपा ने यह आयोजन केवल राजनीतिक छवि चमकाने के लिए किया। उन्होंने इसे “कार्यकर्ताओं के हृदय से नहीं, बल्कि कैमरों के लिए किया गया सम्मान” बताया।
“नेताओं को केवल अपनी ब्रांडिंग करनी थी। मीसाबंदियों के संघर्ष, उनकी तपस्या, उनके परिवारों की पीड़ा की कोई चर्चा तक नहीं हुई।”
“नेताओं के भाषण आत्ममुग्धता से भरे थे”

अवस्थी ने बताया कि मंच पर बैठने वाले नेताओं, सांसदों, विधायकों, पूर्व मंत्रियों, संगठन के पदाधिकारियों ने जो भाषण दिए, उनमें मीसाबंदियों की चर्चा नाममात्र की थी।
“सिर्फ अजय विश्नोई का भाषण सुनिए — केवल अपनी तारीफ, अपनी उपलब्धियों का बखान। जैसे मीसाबंदी केवल उनकी प्रशंसा सुनने आए हों।”
“सुधांशु त्रिवेदी का भाषण ही ज्ञान और चिंतन से भरा था”
वहीं उन्होंने डॉ. सुधांशु त्रिवेदी के भाषण को इस आयोजन का “इकलौता उज्ज्वल बिंदु” बताया।
“उन्होंने वैदिक काल से लेकर आज तक के भारतीय प्रजातंत्र का इतिहास प्रस्तुत किया। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और विदेशी ताकतों द्वारा देश की जड़ों पर हुए सुनियोजित हमलों की गहराई से व्याख्या की।”
उन्होंने त्रिवेदी की शोधपरक शैली की भी सराहना की,
“उन्होंने पुस्तकें, उनके पृष्ठांक, ऐतिहासिक उदाहरण और दस्तावेजों के प्रमाण प्रस्तुत किए। उनकी स्मृति, वक्तृत्व और दृष्टि अद्वितीय है।”
“बीजेपी को प्रवक्ताओं का विश्वविद्यालय बनाना चाहिए”

सुधांशु त्रिवेदी जैसे वक्ताओं से प्रभावित होकर अवस्थी ने सुझाव दिया कि भाजपा को “प्रवक्ता प्रशिक्षण विश्वविद्यालय” स्थापित करना चाहिए, जिससे पार्टी के प्रवक्ताओं का वैचारिक और बौद्धिक स्तर सुधरे।
“आजकल तो प्रवक्ता बनने के लिए चमचागिरी ही योग्यता बन गई है। अगर सही प्रशिक्षण हो, तो पार्टी में गुणवत्ता बढ़ेगी।”
“सम्मान सिर्फ श्रीफल और शाल से नहीं होता”

अवस्थी ने कहा कि मीसाबंदियों को सिर्फ दिखावे के लिए साफा, शाल और श्रीफल देकर सम्मानित किया गया।
“असल सम्मान तो तब होता जब नेता हमारे बीच आते, हमसे मिलते, हमारी पीड़ा को सुनते। परंतु यहाँ तो मंच से ही दूरी बना ली गई। मंच पर बैठे हुए लोग बाद में सिक्योरिटी घेरे में निकल गए।”
“मैं अकेला भगवा वस्त्रधारी था- फिर भी मंच से बाहर”

वे बताते हैं कि पूरे आयोजन में केवल वही भगवा वस्त्रधारी संत थे, जो मीसाबंदी भी थे। फिर भी उन्हें मंच से बाहर ही रखा गया।
“यह केवल मेरा नहीं, भगवा वस्त्र, सनातन परंपरा और संतत्व का अपमान था। क्या यही भाजपा का ‘संतों के प्रति श्रद्धा’ का भाव है?”
उन्होंने भाजपा संगठन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा में अब योग्यता नहीं, गुटबाज़ी, दोस्ती और चमचागिरी ही चलती है।
“जिन कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किए, जेल गए, उनके पास न टिकट है, न पद। और जो कांग्रेस से आए, वे आज भाजपा में बॉस बनकर मंच पर विराजमान हैं।”
“मोदी जी से कुछ नहीं सीखा नेताओं ने”

अवस्थी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर आयोजन में लोगों के बीच जाकर संवाद करते हैं, पर इंदौर के इस आयोजन में किसी बड़े नेता ने ऐसा नहीं किया।
“मोहन यादव, अजय बिश्नोई, सुधांशु त्रिवेदी, कोई भी हमारे सेक्टर में आकर हमसे नहीं मिला। मोदी जी जैसा नेतृत्व इन लोगों में नहीं दिखा।”
वे स्पष्ट करते हैं कि उन्हें भाजपा से अपेक्षा तो थी, लेकिन पूरी नहीं हुई। फिर भी वे भाजपा के साथ हैं, क्योंकि उनके अनुसार कांग्रेस, कम्युनिस्ट, समाजवादी पार्टियाँ “राष्ट्र विरोधी और सनातन विरोधी” हैं।
“भाजपा में जो भी खोट है, वह ठीक की जा सकती है। लेकिन अगर हम कोई अलग दल बनाएं, तो भाजपा कमजोर होगी और देश के दुश्मन मजबूत।”
“भाजपा संघ के मूल्यों से भटक गई है”
अवस्थी कहते हैं कि वे स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमाणिक कार्यकर्ता रहे हैं और उन्होंने संघ के अनुशासन, परस्पर सम्मान और आदर्श कार्यशैली देखी है।
“हिंदू समाज का विश्वास यदि टूट गया, तो भाजपा का अंत तय है”

अवस्थी अंत में चेतावनी देते हैं कि भाजपा यदि आत्मचिंतन नहीं करेगी, तो वह जनता और विशेषतः हिंदू समाज का विश्वास खो देगी।
“आज लोग मोदी जी के कारण वोट देते हैं। उन्हें हटा दीजिए, पार्टी बिखर जाएगी। अगर भाजपा अपने असली कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं देगी, तो वह अंततः स्वयं नष्ट हो जाएगी।”
अवस्थी की अंतिम बात, “मैं संत हूं, इसलिए जो सत्य है, वही कहता हूं। मैं किसी पद, सत्ता, मान की भूख से नहीं बोलता। मैंने केवल वही कहा है, जो मैंने अनुभव किया है। भाजपा में सुधार संभव है, लेकिन केवल तभी जब सत्य सुना जाए और स्वार्थ नहीं, सेवा की राजनीति की जाए।”
विशेष:
यह रिपोर्ट मीसाबंदी संत भगवती प्रसाद अवस्थी के लिखित अनुभव और व्यक्तिगत विचारों पर आधारित है। इसमें सभी विचार उनके ही शब्दों के हवाले से प्रस्तुत किए गए हैं। किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति की आलोचना का उद्देश्य नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक मंच पर उपेक्षा की अनुभूति का विश्लेषण है।