50 Years of Emergency: 25 जून 1975 की रात देश के लोकतंत्र पर ऐसा पर्दा पड़ा, जो 21 मार्च 1977 तक करीब 21 महीने तक छाया रहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लागू कर दिया।
इस निर्णय ने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को झकझोर कर रख दिया। आज, जब इस घटना को 49 साल पूरे हो चुके हैं, तो भारतीय जनता पार्टी ने इसे याद करते हुए कांग्रेस को आड़े हाथों लिया और आपातकाल को लोकतंत्र की सबसे बड़ी हत्या करार दिया।
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50 Years of Emergency: लोकतंत्र की रक्षा की बात करते
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि आज जो दल लोकतंत्र की रक्षा की बात करते हैं उन्होंने ही कभी संविधान की आत्मा को कुचला था। भाजपा ने कहा कि आपातकाल लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय था,
जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत आजादी और विपक्ष की भूमिका को कुचल दिया गया था। यह आलोचना ऐसे समय में की गई, जब विपक्ष भाजपा सरकार पर ही संविधान विरोधी कार्यों का आरोप लगा रहा है।
इंदिरा गांधी को 1971 के चुनाव में भ्रष्ट आचरण
आपातकाल का मुख्य कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट का वह फैसला था, जिसमें इंदिरा गांधी को 1971 के चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया था। यह याचिका उनके प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने दायर की थी।
अदालत ने न सिर्फ उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द की, बल्कि छह साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। इस फैसले से इंदिरा गांधी की सत्ता खतरे में पड़ गई। इसके बाद उन्होंने आपातकाल लागू कर दिया।
प्रेस की आज़ादी को पूरी तरह खत्म
इस फैसले के बाद भारत ने एक ऐसा दौर देखा जिसमें नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे। प्रेस की आज़ादी को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दी गई।
हर अखबार में सेंसर अधिकारी नियुक्त किए गए, जिनकी अनुमति के बिना कोई भी खबर छप नहीं सकती थी। सरकार के खिलाफ लिखने पर पत्रकारों को जेल भेजा गया।
कई नेताओं को डाला गया जेल में
विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियां रातों-रात शुरू हो गई थीं। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सहित सैकड़ों नेता जेल में डाल दिए गए। हालात ऐसे हो गए कि जेलों में जगह नहीं बची थी।
हर प्रकार का विरोध और असहमति कुचल दी गई थी। सरकार के खिलाफ बोलना या लिखना अपराध बन चुका था। प्रशासन और पुलिस को खुली छूट दी गई थी, जिसके चलते आम नागरिकों को प्रताड़ित किया गया।
इस समय की सबसे विवादित योजनाओं में एक थी जबरन नसबंदी। जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर लाखों लोगों की जबरन नसबंदी की गई। इसके अलावा दिल्ली के तुर्कमान
गेट जैसे इलाकों में गरीबों की बस्तियां बुलडोज़ कर दी गईं। इन कार्रवाइयों के पीछे संजय गांधी की भूमिका मानी जाती है, जो उस समय सत्ता के पीछे की सबसे प्रभावशाली शख्सियत बन चुके थे।
पश्चिम बंगाल के सीएम ने दी आपातकाल लगाने की सलाह
इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आरके धवन ने बाद में दिए एक इंटरव्यू में इन घटनाओं की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि जनवरी 1975 में ही पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएस राय ने इंदिरा को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी।
राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं थी। धवन के अनुसार, कई घटनाओं से खुद इंदिरा गांधी अनजान थीं। उन्हें न तो नसबंदी की जबरन कार्रवाइयों की जानकारी थी,
न ही तुर्कमान गेट की बर्बादी का पता था। संजय गांधी के मारुति प्रोजेक्ट के लिए की गई जमीन अधिग्रहण की कोशिशों के पीछे भी धवन की ही भूमिका थी।
राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए लगाया आपातकाल
धवन ने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए नहीं लगाया था। वह तो इस्तीफा देने के लिए तैयार थीं, लेकिन उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी।
बाद में जब चुनाव करवाने का फैसला हुआ तो इंदिरा को उनके प्रधान सचिव पीएन धर ने बताया था कि आईबी की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस को 340 सीटें मिल सकती हैं, लेकिन चुनाव परिणाम इसके उलट आए और इंदिरा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
फिर भी, इंदिरा गांधी इस हार से विचलित नहीं हुईं। उन्होंने कहा, “शुक्र है, अब मेरे पास अपने लिए समय होगा।” यह बयान उस महिला का था, जिसने भारत की राजनीति में एक लंबा दौर बिताया था लेकिन जिसकी एक भूल ने लोकतंत्र को ऐसा घाव दिया जिसे इतिहास कभी नहीं भुला पाएगा।
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