Sunday, April 20, 2025

तमिलनाडु में भाजपा की रणनीति निर्णायक मोड़ पर

दक्षिण भारत में भाजपा का बढ़ता हस्तक्षेप

तमिलनाडु में 2026 के विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने अपनी सक्रियता स्पष्ट कर दी है। पार्टी अब केवल उपस्थिति बनाए रखने की रणनीति से आगे बढ़ चुकी है।
एआईएडीएमके के साथ भाजपा के गठबंधन की औपचारिक घोषणा हो चुकी है। गृहमंत्री अमित शाह ने चेन्नई में बताया कि पलानीस्वामी गठबंधन का चेहरा होंगे और प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदान करेंगे। प्रदेश इकाई की कमान नैनार नागेंद्रन को सौंपी गई है।

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राज्य में यह घटनाक्रम किसी सामान्य चुनावी साझेदारी का विस्तार नहीं है। इसके पीछे एक लंबा विचार और कार्य-प्रणाली जुड़ी है जो अब तमिल राजनीति को सीधे केंद्र की राजनीतिक दृष्टि से जोड़ती है।

द्रविड़ राजनीति की ज़मीन और भाजपा की रणनीतिक पकड़

तमिलनाडु में हिन्दू आस्था और परंपरा की सामाजिक उपस्थिति सदैव प्रबल रही है। राज्य के मंदिर, मठ और धार्मिक परंपराएं जीवित रही हैं। इसके बावजूद भाजपा या संघ की विचारधारा को सत्ता की राजनीति में कभी स्थान नहीं मिला।

राज्य में लंबे समय तक द्रविड़ आंदोलन का प्रभाव रहा है। इस आंदोलन ने राष्ट्रवाद, हिंदी भाषा और हिन्दू परंपरा को उत्तर भारतीय वर्चस्व के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया। इसी विचारधारा ने राजनीति और संस्कृति के बीच एक व्यवस्थित खाई बना दी भाजपा इस खाई को संगठन, वैचारिक संवाद और क्षेत्रीय सम्मान के ज़रिए पाटने की दिशा में सक्रिय है।

मोदी और शाह की दीर्घकालिक रणनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई वर्षों से तमिलनाडु की सांस्कृतिक और भाषाई गरिमा को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। काशी-तमिल संगमम् का आयोजन हो, या संसद भवन में सेंगोल की स्थापना — भाजपा ने तमिल परंपरा को भारतीय पहचान के साथ जोड़ने के लिए प्रतीकों और कार्यक्रमों का क्रमबद्ध उपयोग किया है।

अमित शाह की भूमिका पूरी रणनीति में ज़मीनी है। उन्होंने गठबंधन की योजना को केवल समझौता बनाकर नहीं छोड़ा। राज्य के हर ज़िले में कार्यकर्ता, कैडर और प्रचार-तंत्र को व्यवस्थित करने की दिशा में काम हुआ है। पार्टी अब तमिलनाडु को अस्थायी प्रयोग के बजाय स्थायी राजनीतिक और वैचारिक हिस्सेदार मान रही है।

सांस्कृतिक प्रतीकों का हस्तक्षेप और वैचारिक विस्तार

तमिल समाज में प्रतीकों का गहरा प्रभाव है। सेंगोल इसका प्रमुख उदाहरण है। सत्ता का नैतिक हस्तांतरण तमिल परंपरा में एक आचार-व्यवस्था से जुड़ा रहा है। जब उसे संसद भवन में स्थान दिया गया, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं थी। यह इस बात का संकेत था कि भाजपा दक्षिण की सांस्कृतिक भाषा को समझने और उसके अनुसार संवाद करने में सक्षम है।

तमिल भाषा, साहित्य और आध्यात्मिक परंपराओं के प्रति प्रधानमंत्री मोदी ने जो सम्मान व्यक्त किया है, उसका असर धीरे-धीरे जनमानस तक पहुँचा है। यह कार्य किसी विज्ञापन के ज़रिए नहीं हुआ। यह चरणबद्ध और संयमित राजनीतिक प्रयास का परिणाम है।

शिक्षा नीति और भाषा विवाद पर भाजपा की स्थिति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर स्टालिन सरकार लगातार विरोध करती रही है। त्रिभाषा नीति को हिंदी थोपने का माध्यम बताया गया। भाजपा ने इन दावों को आधारहीन बताया है। पार्टी का पक्ष स्पष्ट है — भाषा किसी क्षेत्र की पहचान होती है, लेकिन शिक्षा से अवसर तय होते हैं। त्रिभाषा नीति छात्रों को बहुभाषिक बनने का अवसर देती है।

इस विषय पर भाजपा ने भावनात्मक अपील की बजाय व्यावहारिक संवाद को प्राथमिकता दी है। राज्य के युवाओं से लेकर अभिभावकों तक भाजपा की बात पहुँची है। पार्टी ने यह दर्शाया है कि वह सिर्फ केंद्र की योजनाएँ थोपने नहीं, उन्हें समझाने में यकीन रखती है।

विकास के साथ संवाद और सत्ता के साथ वैचारिक हस्तक्षेप

भाजपा ने इस चुनाव को केवल सत्ता की होड़ में नहीं देखा। पार्टी ने ज़मीन पर संवाद की दिशा में काम किया है। ज़िला, मंडल और बूथ स्तर पर सांगठनिक ढांचे को मज़बूत किया गया है। राज्य के विभिन्न वर्गों — युवा, महिलाएँ, व्यापारी, किसान, मंदिर-समाज से पार्टी ने सीधा संवाद शुरू किया है।

वोट बैंक की पारंपरिक गणनाओं से हटकर भाजपा ने सांस्कृतिक सम्मान, प्रशासनिक पारदर्शिता और सुरक्षा को अपना एजेंडा बनाया है। राज्य की जनता अब इस बात को महसूस कर रही है कि भाजपा प्रचार से नहीं, मुद्दों से चुनाव में है।

मंदिरों और वक्फ अधिनियम पर भाजपा की स्पष्ट आवाज़

राज्य में मंदिरों की स्थिति को लेकर भाजपा ने कई बार सवाल उठाए हैं। सरकारी नियंत्रण, दान की पारदर्शिता, नियुक्तियों में पक्षपात — इन मुद्दों को जन संवाद का विषय बनाया गया है। भाजपा यह मांग कर रही है कि मंदिरों को धार्मिक संगठनों के नियंत्रण में दिया जाए और पुजारी परंपरा का सम्मान बहाल किया जाए।

वक्फ एक्ट को लेकर भी पार्टी ने ज़मीन पर जानकारी साझा की है। किस आधार पर एक विशेष समुदाय को इतनी बड़ी भूमि का कानूनी स्वामित्व दिया गया, यह प्रश्न उठाया गया है। भाजपा इसे धार्मिक मुद्दा नहीं, न्याय और पारदर्शिता का विषय मान रही है।

समापन: तमिलनाडु में राष्ट्रवादी विमर्श की वापसी

तमिलनाडु में भाजपा अब एक ऐसी स्थिति में है जहाँ वह किसी सहारे की नहीं, साझा नेतृत्व की भाषा बोल रही है। पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री चेहरा बनाना संगठन का सामंजस्यपूर्ण निर्णय है, लेकिन चुनावी एजेंडा भाजपा के नियंत्रण में है। तमिल समाज के भीतर भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ी है। यह स्वीकृति प्रचार से नहीं आई। यह संगठन, विचार और सांस्कृतिक संवाद के माध्यम से बनी है।

2026 का चुनाव इस दिशा में मील का पत्थर बन सकता है। यदि भाजपा यहाँ निर्णायक समर्थन पाती है, तो यह दक्षिण भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा की वैचारिक पुनर्स्थापना का संकेत होगा।

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