Maharashtra Assembly Election 2024 results: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाई है। महायुति ने महाराष्ट्र की सत्ता में बैठने के लिए बहुमत का आंकड़े 145 से भी अधिक 200 का आंकड़े को पार कर लिया है। बीजेपी 125 शिंदे की शिवसेना और अजित पवार भी पावरफुल बनकर उभरे। एनसीपी का स्ट्राइक रेट 70 फीसदी से अधिक रहा। वह चाचा शरद पवार पर विधानसभा में भारी पड़े। अघाड़ी महाराष्ट्र चुनाव में पूरी तरह धूल फांकती नजर आई।
वहीं महाविकास अघाड़ी की कोई पार्टी 28 का आंकड़ा नहीं छू पाई, जो नेता प्रतिपक्ष की सीट के लिए जरूरी है। उद्धव ठाकरे ने इस जनादेश पर हैरानी जताई। महाराष्ट्र चुनाव में इस प्रचंड जीत का सबसे बड़ा कारण लोकसभा चुनाव में महायुति की हार है, जिसके बाद बीजेपी ने अचानक से रणनीति बदल दी। पूरे चुनाव में महायुति एकजुट नजर आई और सभी सहयोगी चुनावी एजेंडे पर एकजुट रहे। चुनाव से पहले सीएम के चेहरे को लेकर तनातनी और बयानबाजी ने भी अघाड़ी की गाड़ी पर ब्रेक लगा दिया।
जीत के वे कारण जिन्होंने महायुति को दिया प्रचंड बहुमत
1.महाराष्ट्र में चल गया बंटेंगे तो कटेंगे का जादू
बीजेपी की ओर से योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार में एक बड़ी लकीर खींच दी। योगी ने ‘कटेंगे तो बंटेंगे’ का नारा दिया। पीएम मोदी ने भी ‘एक है तो सेफ हैं’ जैसी अपील कर योगी के नारे को कल्ट बना दिया। चुनाव के बीच वक्फ बोर्ड की ओर से जिस तरह जमीन पर दावे किए गए, उससे आम वोटरों के बीच इस नैरेटिव को ताकत मिल गई। मुस्लिम संगठनों की ओर से महाविकास अघाड़ी के लिए वोटिंग करने का फतवा भी महायुति के लिए वरदान साबित हुआ।
2. लाडली बहनों ने वोट से दिया साथ
महाराष्ट्र चुनाव से पहले शिंदे सरकार ने लाडली बहना योजना शुरु की, जिसमें महिलाओं के लिए 1500 रुपये हर महीने दिए गए। चुनाव प्रचार के दौरान महायुति ने इस राशि को 2100 रुपये हर महीने देने का वादा किया। इसके अलावा किसानों के लिए कर्जमाफी का वादा भी किया। महायुति के तीनों घटकों ने लाडली योजना को हर तरह से भुनाने की कोशिश की। रिपोर्टस के अनुसार, इसके प्रचार पर ही 200 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 20 नवंबर को भी एक किस्त जारी की गई। चुनाव में इसका असर यह रहा कि महिलाएं वोट के लिए बाहर निकलीं। धुले में महिलाओं ने रात तक मतदान किया।
3. आरएसएस का जमीन पर समर्थन का असर
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने साथ दिया। चुनावी सभा में देवेंद्र फडणवीस भी संघ के गीत गाए। सूत्रों के अनुसार, आरएसएस ने बीजेपी के चीफ मिनिस्टर पद के लिए देवेंद्र फडणवीस का नाम भी तय कर दिया। फिर आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठन के कार्यकर्ता मैन टु मैन मार्किंग के आधार पर काम किया। इस बार राहुल गांधी की लाल किताब का असर नहीं हुआ।
4. एकनाथ शिंदे बने तुरुप का पत्ता
उद्धव ठाकरे की सरकार गिराकर सीएम बनने वाले एकनाथ शिंदे इस चुनाव के तुरुप का पत्ता बनकर उभरे। उद्धव गुट से ‘गद्दार’ और ‘धोखेबाज’ जैसी आलोचना झेलने के बाद उन्होंने ढाई साल में विकास करने वाले और आम लोगों के बीच रहने वाले नेता की छवि बनाई। अनुभवी राजनेता की तरह शिंदे ने चुनाव से पहले ही तय कर दिया कि महायुति की सरकार के लिए वह अपनी कुर्सी का त्याग कर सकते हैं।
5. उद्धव ठाकरे ने भी किया अघाड़ी को चौपट
लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को बड़ी जीत मिली थी। इस जीत के बाद शिवसेना नेताओं के तेवर धारदार हो गए। उद्धव ठाकरे समेत यूबीटी के नेता बीजेपी के विरोध के सुर में यह भूल गए कि उनकी छवि हिंदुत्ववादी पार्टी की है। बाल ठाकरे की छवि से उलट उद्धव ठाकरे ने खुद को सर्वसमाज के नेता बनाने की कोशिश की। टिकट बंटवारे के दौरान जिस तरह सीटों और सीएम फेस को लेकर विवाद हुआ, उससे भी उद्धव कमजोर नजर आए। संजय राउत जैसे नेता के बयान ने भी यूबीटी को नुकसान पहुंचाया।
6. अजित पवार भी चले सधी चाल
महाराष्ट्र चुनाव में महायुति के साथी बनकर अजित पवार ने बड़ी सधी हुई चाल चली। उनके सामने योगी आदित्यनाथ के नारे बंटेंगे तो कटेंगे के नारे से ट्रडिशनल वोटरों को बचाना था, जिसे उन्होंने बखूबी निभा लिया। वह खुलकर आदित्यनाथ का विरोध करते रहे। इस दौरान उन्होंने एक चालाकी बरती। पूरे प्रचार के दौरान अजित पवार और उनके कैंडिडेट ने शरद पवार की आलोचना नहीं की। साथ ही सहयोगी बीजेपी को भी कंट्रोल में रखा।