Thursday, December 4, 2025

मुंबई 26/11 हमला: 17 साल बाद भी जिंदा हैं उस रात के ज़ख्म

मुंबई पर हुए 26/11 के आतंकी हमले को आज 17 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन उस रात की दहशत अब भी चश्मदीदों के दिल-दिमाग में ताजा है।

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आतंकियों ने जब मुंबई पर गोलियां बरसाईं थीं, तब शहर का हर कोना चीखों और डर से भर गया था। उस रात न धर्म देखा गया, न जात-हर कोई बस अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहा था,

लेकिन कई लोग ऐसे थे जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की जिंदगी बचाई।

उन्हीं में से एक हैं चश्मदीद मोहम्मद तौफीक शेख, जिनकी यादों में आज भी वो खौफनाक रात जिंदा है।

मुंबई 26/11 हमला: रात को नींद नहीं आती

तौफीक शेख बताते हैं कि 17 साल बीत जाने के बाद भी उनकी नींद आज तक पूरी नहीं हो पाती। “रात को नींद नहीं आती, सुबह पांच-छह बजे जाकर सो पाता हूं,” वे कहते हैं।

उस रात CST स्टेशन पर उन्होंने घायल लोगों को उठाया, उन्हें सुरक्षित जगह पहुंचाया और कम से कम तीन से चार लोगों की जान बचाने में सफल रहे।

वे याद करते हैं कि टिकट काउंटर पर खड़े लोगों पर आतंकियों ने लोहे की रॉड से हमला किया था। इसी दौरान पीछे से उन पर भी हमला हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और घायलों की मदद जारी रखी।

10 साल की उम्र में झेला गोली का दर्द

तौफीक बताते हैं कि उन्हें बाद में पुलिस ने चाय पिलाई और उनका बयान लिया। क्राइम ब्रांच ने भी उन्हें बुलाकर हमलावर की पहचान कराई।

कोर्ट में उन्हें फोटो पहचान परेड के दौरान भी गवाही देनी पड़ी। वे कहते हैं, “मैंने एक ही हमलावर को देखा था, इसलिए उसे पहचान सका। उम्मीद है कि न्याय होगा और सभी दोषियों को सजा मिलेगी।”

उस रात की एक और गवाही है 10 साल की उम्र में गोली का सामना करने वाली देविका रोटावन की। आज 17 साल बाद भी उनके ज़ख्म भरे नहीं हैं।

देविका कहती हैं कि उनके लिए 26/11 सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक ऐसा पल है जो आज भी वहीं अटका हुआ है। “लोग कहते हैं 17 साल हो गए, लेकिन मुझे लगता है सब अभी-अभी हुआ है।

मैं आज भी उस रात को अपनी आंखों से देख सकती हूं, अपने पैर में लगी गोली का दर्द महसूस कर सकती हूं,” देविका बताती हैं।

सबसे कम उम्र की गवाह

वह कहती हैं कि दूसरों के लिए साल बदलते रहते हैं, लेकिन जिन्होंने आतंक का सामना किया है, उनके लिए समय वहीं थम जाता है।

देविका भारत की सबसे कम उम्र की गवाह बनी थीं और कसाब के खिलाफ निर्णायक गवाही देकर आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया था।

26/11 सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था, बल्कि मुंबई की हिम्मत, एकता और मानवता की सबसे कठिन परीक्षा थी।

उस रात हिन्दू-मुस्लिम, अमीर-गरीब, स्थानीय-बाहरी जैसे सभी फ़र्क खत्म हो गए थे। लोग बस इंसान थे…जो एक-दूसरे को बचाने की कोशिश कर रहे थे।

आज 17 साल बाद भी जब चश्मदीद उन पलों को याद करते हैं, तो उनके शब्दों में डर, दर्द और साहस-तीनों की झलक साफ दिखाई देती है।

Madhuri Sonkar
Madhuri Sonkarhttps://reportbharathindi.com/
ETV Bharat में एक साल ट्रेनिंग कंटेंट एडिटर के तौर पर काम कर चुकी हैं। डेली हंट और Raftaar News में रिपोर्टिंग, V/O का अनुभव। लाइफस्टाइल, इंटरनेशनल और बॉलीवुड न्यूज पर अच्छी पकड़।
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