श्री राम मंदिर: यदि हम राम मंदिर के इतिहास को देखें, तो 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच अनेक सनातनी ऐसे थे जिनका सपना था कि वे अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर को बनते हुए देखें। परन्तु यह सौभाग्य उनके जीवनकाल में पूर्ण न हो सका।
इसी दौर में पहली बार कानूनी रूप से अपने अधिकार की मांग करते हुए रामभक्त अदालतों के दरवाज़े तक पहुँचे।
लगभग 150 वर्ष पहले कई ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इस संघर्ष में अपनी जान तक गंवा दी, और कुछ ऐसे भी जिन्होंने अदालतों में 40-50 वर्षों तक कानूनी लड़ाई जारी रखी।
इन सभी ने अपने जीवन का हर क्षण श्रीराम जन्मभूमि के मंदिर हेतु समर्पित कर दिया, परंतु वे इस भव्य राम मंदिर के दर्शन नहीं कर सके।
आज हम सौभाग्यशाली हैं कि बिना किसी परिश्रम के 500 वर्षों के इस कठिन संघर्ष का अंतिम परिणाम देख पा रहे हैं।
यह वही राम मंदिर का इतिहास है जिसे लगभग 492 वर्ष पूर्व, 1528 में मुगल आक्रमणकारी बाबर ने बलपूर्वक ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था।
परन्तु राम मंदिर का इतिहास केवल यहीं से प्रारंभ नहीं होता। इसके लिए उन ऐतिहासिक पहलुओं को जानना भी आवश्यक है जो आमतौर पर लोगों को ज्ञात नहीं हैं।
माना जाता है कि राम मंदिर का प्रारम्भिक इतिहास भगवान श्रीराम के पुत्र कुश से जुड़ता है, जिन्होंने इसी स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया था। समय के साथ अयोध्या में भगवान राम के 3000 से अधिक मंदिर निर्मित हुए।
मान्यता है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर स्थित था, जिसे बाबर ने गिराकर मस्जिद बनवा दी।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सफर चुनौतियों से भरा रहा — बाबरी विवाद, अदालतों में लंबी सुनवाई और फिर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद निर्माण कार्य आरम्भ हुआ।
श्री राम मंदिर: 500 वर्षों का संघर्ष
श्री राम मंदिर: अयोध्या विवाद की शुरुआत 1528 से मानी जाती है, जब मीर बाकी ने बाबर के आदेश पर राम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया।
1932 में प्रकाशित पुस्तक ‘अयोध्या—ए हिस्ट्री’ में भी इसका उल्लेख मिलता है कि बाबर ने राम जन्मभूमि के मंदिर को गिराने का आदेश दिया था।
मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनाने की इस प्रक्रिया को हिंदुओं ने असहाय होकर देखा। विरोध करने वाले कई लोगों को मुगल सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया।
लगभग 150 वर्षों तक यह मस्जिद बिना किसी बड़े विरोध के खड़ी रही, क्योंकि उस काल में उत्तर भारत में मुगलों की पकड़ बेहद मजबूत थी।
श्री राम मंदिर: पहला प्रयास
1717 में, बाबरी मस्जिद के निर्माण के लगभग 190 वर्ष बाद, जयपुर के राजा जयसिंह ने इस स्थल को प्राप्त करने का प्रयास किया।
उन्हें राम जन्मभूमि की पौराणिक और ऐतिहासिक महत्ता का भली-भांति ज्ञान था, और मुस्लिम शासकों से अच्छे संबंध होने के कारण उन्हें सफलता की उम्मीद भी थी।
हालाँकि प्रयास सफल नहीं हुआ, परंतु उन्होंने हिंदुओं के आग्रह पर मस्जिद के पास राम चबूतरा बनवा दिया ताकि पूजा जारी रह सके।
यूरोपीय विद्वान जोसेफ टेफेंथेलर ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है।
इस समय मुसलमान मस्जिद के भीतर नमाज़ पढ़ते थे और हिंदू बाहर बने चबूतरे पर पूजा करते थे।
250 वर्ष बीत जाने पर भी हिंदू इस मंदिर के इतिहास को नहीं भूले और नई पीढ़ी भी बाबरी मस्जिद के बारे में जानने लगी।
श्री राम मंदिर: दूसरा बड़ा प्रयास
श्री राम मंदिर: 1853 में पहली बार बाबरी मस्जिद को लेकर अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल में सांप्रदायिक हिंसा भड़की।
1855 तक हिंदू और मुसलमान दोनों ही इस स्थान पर पूजा और नमाज़ करते रहे।
ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर जेम्स आउट्रम ने भी इस विवाद की रिपोर्ट अपने वरिष्ठों को भेजी।
30 नवंबर 1858 को मोहम्मद सलीम ने निहंग सिखों के एक समूह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि उन्होंने मस्जिद परिसर में धार्मिक अनुष्ठान किया।
थाना प्रभारी शीतल दुबे की रिपोर्ट में उल्लेख है कि खालसा पंथ के निहंग सिंह फकीरों ने मस्जिद परिसर में गुरु गोविंद सिंह का हवन तथा भगवान श्रीराम का प्रतीक स्थापित किया।
1859 में बढ़ते विवाद को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने सात फुट ऊँची दीवार बनवाकर आंतरिक प्रांगण मुसलमानों के लिए तथा बाहरी हिंदुओं के लिए निर्धारित कर दिया।
श्री राम मंदिर: अदालत में पहली अर्जी
निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने पहला मुकदमा चबूतरे पर मंडप बनाने की अनुमति के लिए दायर किया।
याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई कि चबूतरा मुस्लिम पक्ष के कब्ज़े में है, और निर्माण से विवाद और गहरा होगा।
जिला जज कर्नल एफ.ई.ए. चैमियर ने माना कि मस्जिद हिंदुओं के पूजनीय स्थल पर बनी है, परंतु “350 साल पुरानी गलती को सुधारने में बहुत देर हो चुकी है” कहते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
1934 में हुए दंगों में बाबरी मस्जिद की एक दीवार टूट गई, जिसे मरम्मत करा दिया गया लेकिन इसके बाद मुसलमानों ने वहाँ नमाज़ पढ़ना बंद कर दिया।
श्री राम मंदिर: आज़ादी के बाद की उम्मीदें
1947 में देश आज़ाद हुआ। उस समय बाबरी मस्जिद केवल शुक्रवार को खुलती थी और हिंदू राम चबूतरे पर पूजा करते थे।
लोगों को उम्मीद थी कि आज़ादी के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण होगा, परंतु स्थिति जस की तस बनी रही।
1949 में एक रात मस्जिद के अंदर घंटी की आवाज सुनाई दी और बताया गया कि वहाँ भगवान राम की मूर्ति प्रकट हुई है।
मुस्लिम पक्ष ने कहा कि मूर्ति रात में रखी गई है।
भीड़ इतनी बढ़ गई कि मामला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक पहुँचा।
नेहरू ने मजिस्ट्रेट के.के. नायर को मूर्ति हटाने का आदेश दिया, पर नायर ने चेताया कि इससे बड़ा तनाव उत्पन्न होगा।
नेहरू के दोबारा आदेश भेजने पर भी उन्होंने मूर्ति हटाने से इनकार कर दिया और उसके बजाय जालीदार गेट लगाने का सुझाव दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
श्री राम मंदिर: ताला खोलने की अनुमति
फैजाबाद के वकील उमेश चंद्र पांडे की याचिका पर जिला जज के.एम. पांडे ने 1949 से लगे ताले को खोलने और पूजा की अनुमति देने का आदेश दिया।
40 मिनट के भीतर ताला खोल दिया गया।
हाशिम अंसारी ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष को सुना नहीं गया।
श्री राम मंदिर: मस्जिद हटाकर मंदिर बनाने की मंजूरी
1989 में न्यायमूर्ति देवकीनंदन अग्रवाल ने विवादित भूमि की बहाली और मस्जिद हटाने हेतु याचिका दायर की।
शंकराचार्य शांतानंद बद्रीनाथ को रामशिला पूजन आरंभ करने का निर्देश दिया गया।
देशभर से लाखों रामशिलाएँ अयोध्या भेजी गईं।
विहिप के कामेश्वर चौपाल ने शिलान्यास की पहली ईंट रखी।
श्री राम मंदिर: रथयात्रा और कारसेवकों का बलिदान
1990 में भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली।
समस्तीपुर, बिहार में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, पर रथयात्रा जारी रही।
हजारों कारसेवक अयोध्या पहुँचे और विवादित ढाँचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया।
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मुलायम सिंह सरकार ने गोली चलवाई जिसमें कई कारसेवक शहीद हुए।
6 दिसंबर 1992 को लगभग दो लाख कारसेवक अयोध्या पहुँचे और विवादित ढाँचा ढहा दिया।
श्री राम मंदिर: दर्शन–पूजन की अनुमति
विध्वंस के दो दिन बाद कर्फ्यू लगाया गया।
वकील हरिशंकर जैन की अपील पर 1 जनवरी 1993 को अदालत ने दर्शन–पूजन की अनुमति दे दी।
7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया।
इसके बाद मुंबई में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए जिसमें 257 लोग मारे गए।
श्री राम मंदिर: अदालत का पहला बड़ा फैसला
2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई कर 2003 में रिपोर्ट सौंपी, जिसमें जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढाँचा होने की पुष्टि हुई।
श्री राम मंदिर: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
30 सितंबर 2010 को भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय दिया गया —
श्री राम लला विराजमान
निर्मोही अखाड़ा
सुन्नी वक्फ बोर्ड
मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुँचा। 2017 में कोर्ट ने मध्यस्थता का सुझाव दिया, पर समाधान नहीं निकला।
श्री राम मंदिर: सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
6 अगस्त 2019 से सुनवाई पुनः प्रारंभ हुई, 40 दिन चली और 16 अक्टूबर को निर्णय सुरक्षित रखा गया।
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि को श्रीराम जन्मभूमि घोषित किया।
2.77 एकड़ भूमि श्रीरामलला को दी गई।
सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावे खारिज किए गए।
साथ ही मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का आदेश दिया गया।
श्री राम मंदिर: निर्माण कार्य प्रारंभ
5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा शिलान्यास हुआ और ट्रस्ट का गठन किया गया।
3 वर्ष 5 महीने 17 दिनों में मंदिर का प्रथम चरण पूरा हुआ।
श्री राम मंदिर: मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा
जनवरी 2024 में गर्भगृह सहित प्रथम तल तैयार हुआ।
22 जनवरी 2024 को शुभ मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि रहे।
सिनेमा जगत के कई कलाकार सहित लगभग 6000 वीवीआईपी उपस्थित रहे।
श्री राम मंदिर: ध्वजारोहण समारोह
मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के 1 वर्ष 10 महीने 3 दिन बाद, मंदिर कार्य पूर्ण होने पर भव्य ध्वजारोहण समारोह आयोजित किया गया है।
मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं शिखर पर ध्वज फहराएँगे।
ध्वज आरोहण के साथ —
21 तोपों की सलामी
हेलीकॉप्टरों से पुष्पवर्षा
और “जय श्री राम” के गगनभेदी जयकारे
अयोध्या को गूँजायमान करेंगे।

