जगन्नाथ मंदिर की रहस्यमयी कहानी 

जगन्नाथ मंदिर, एक ऐसा मंदिर है जहां सिर्फ सनातनी हिन्दू को प्रवेश दिया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर ने पूर्व प्रधानमंत्री को तक को प्रवेश नहीं दिया था क्यूंकि वो सनातनी हिन्दू नहीं थी। 

ये एक ऐसा मंदिर है जिसके पास करोड़ों के खजाने हैं, कहते हैं इस मंदिर के आगे तो विज्ञान भी फेल है। 

आइये आज इस मंदिर कि पूरी कहानी आपको बताते हैं। 

कहा जाता है कि 3102 BC में “जरा” नाम के एक शिकारी ने, भगवान के कृष्ण अवतार के तलवे पर तीर मारा, और प्रभु ने अपनी कृष्णलीला समाप्त कर दी।

जब श्री कृष्ण के शरीर का अंतिम संस्कार किया जा रहा था, तब पूरा शरीर जल गया, लेकिन उनका दिल नहीं जला | उस दिल को बाद में  पेड़ की बड़ी टहनी पर रख कर बहा दिया। 

इस घटना के बहुत सालों बाद मध्य भारत में एक राजा हुए जिनका नाम इन्द्रद्युम्न था। ये राजा श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। भगवान ने एक दिन राजा को सपने में आकर आदेश दिया कि पुरी जाओ। 

सुबह उठ कर राजा वहां गए, उन्हें वहां एक बड़े पेड़ की टहनी मिली। राजा देखते ही समझ गए कि ये वही लकड़ी है जिसमें रखकर श्री कृष्ण के दिल को बहाया गया था। 

राजा लकड़ी को अपने साथ ले आये और उस लकड़ी से मूर्ति बनाने के लिए बड़े-बड़े शिल्पकारों को बुलाया गया। सभी शिल्पकारों ने अपने दिमाग पर ज़ोर डाला पर किसी को समझ नहीं आया की क्या बनाये। 

तब राजा ने देवताओं के शिप्लाकार से आग्रह किया। शिल्पकार मान गए लेकिन उन्होनें एक शर्त रखी कि कोई भी 21 तक उनसे ना ही मिलेगा और ना ही मिलेगा। लेकिन राजा की पत्नी से रहा नहीं गया और वह पन्द्रहवें दिन ही मूर्ति देखने चली गयी।

रानी के वहां पहुंचते ही शिल्पकार अंतर्धान हो गए, जितनी मूर्ति उनसे बन पायी, आज आप जगन्नाथ मंदिर में वही मूर्ति देखते हैं। 

जगन्नाथ मंदिर, चार धामों में से एक है, समय के साथ-साथ इस मंदिर का क्षेत्रफल बढ़ता गया।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण जितना रहस्यमई है, उतना ही रहस्यमयी है इस मंदिर में होने वाली चीज़ें।

जैसे मंदिर के शिकार के ऊपर से कोई पंछी नहीं उड़ता, मंदिर पर लगे सुदर्शन चक्र को आप किसी भी साइड से देखें तो उसका मुंह आपकी तरफ ही लगेगा। हर रोज़ मंदिर का झंडा बदला जाता है , अगर किसी दिन नहीं बदला तो, मंदिर 18 साल के लिए बंद रहेगा। 

और तो और इस मंदिर की परछाई कभी जमीन पर नहीं पड़ती।