महाभारत की रणभूमि में अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान सर्वश्रेष्ठ ज्ञान माना गया है। श्रीमद्भागवत गीता, श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई बहुमूल्य बातों का एक संग्रह है।
आज हम भागवत के वो श्लोक पढ़ेंगे जो आपको कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी निकलना सिखाएंगे।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तरमादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
इसमें बात हो रही हैं तीव अवगुणों की जो किसी भी व्यक्ति को त्याग देने चाहिए। वो तीन अवगुण है काम, क्रोध और लोभ। ये मनुष्य को उसके लक्ष्य से भटकाते हैं और उसे पतन की ओर ले जाते हैं। इनसे मुक्ति पाकर ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को वश में करता है, उसकी बुद्धि स्थिर रहती है। ऐसी स्थिर बुद्धि वाला व्यक्ति ही सफलता और जीवन के कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करता है।
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना। न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।
इस श्लोक में श्री कृष्ण ने सिखाया है कि जिसका मन धन, वासना और आलस्य में लिप्त है, उसे आत्मज्ञान व शांति नहीं मिलती, और बिना शांति के सुख संभव नहीं है। इसलिए सुख पाने के लिए मन पर नियंत्रण आवश्यक है।